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(७८) महाकवि दौलतराम
(२२५) शिवपुर की डगर समरस' सौंभरी, सो विषय विरस रचि थिरविसरी ॥ सम्यक दरश-बोध-व्रत्तमय भव दुखदावानल मेघ झरी ॥१॥ ताहि न पाय तपाय देह बहु जनम मरन करि विपति भरी । काल पाय जिन धुनिसुनि मैं जन, ताहि लहूं सोई धन्य धरी ॥२॥ ते जन धनि या मोहि नित, तिन कीरति सुरयति उचरी । विषयचाह भवराह त्याग अब दौलै हरो रज रहसि अर ॥ ३ ॥
(२२६) तू काहे को करत रति तर में, यह अहित मूल जिम'कारासदेन २ ॥ टेक ॥ चरमपिहित३ पलरुधिर लिप्तमल द्वार सवै४ छिन छिन में ॥१॥ आयु निगड़५ फंसि विपति भरै सो, क्यों न विचारत मन में ॥२॥ सुचरन लांग त्याग अब या को जो न भ्रमै भव वन में ॥ ३ ॥ 'दौल' देह'६ सौं नेह देहे को हेतु कह्यो ग्रन्थन में ॥ ४ ॥
(२२७) हमतो कबहू न निज गुन भाये। तन निज मान जान तन दुख सुख में बिलखे ९ हरखाये ॥ तनको मरन मरन लखि तनको धरन, मान हम जायें ॥ हम तो. ॥ टेक ॥ या भ्रम भौर२१ परे भवजल चिर चहुंगति विपत लहाये ॥ हम तो. ॥१॥ दरशबोधि व्रतसुधा न चाख्यौ, विविध विषय२-विष खाये । सुगुरू दयाल सीख दई पुनि पुनि सुनि २ उर२३ उरनहिं लाये ॥ हम तो. ॥२॥ वहिरातमता तजी न अन्तर दृष्टि न है निज ध्याये । धाम-काम-धन-कामा की नित आश"हुताश जलाये ॥ हम तो. ॥ ३ ॥ अचल अनूप शुद्ध चिद्रूपी सबसुखमय मुनि गाय । 'दौल' चिदानंद स्वगुन मन जे ते जिय सुखिया थाये ॥हम तो. ॥४॥
१.मार्ग २.समता रस से ३.अन्य रस ४.सदैव से भुलाई हुई ५.सम्यग्दर्शज्ञानचारित्र ६.बादल ७.जिनवाणी ८.घड़ी ९.पाप धूल १०. बुराई की जड़ ११.जिस प्रकार १२.कैदखाना १३.चमड़े से मढ़ा १४.बहता है १५.साँकल १६.शरीर से प्रेम १७.शरीर धारण करने का कारण १८.शरीर १९.रोना है २०.प्रसन्न होना २१.मैंवर २२.विषय-भोग २३.हृदय २४.आशा रूपी अग्नि।
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