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बुध महाचंद्र
(२२८) देखो पुद्गल का परिवारा' जामैं चेतन है इक न्यारा ॥ देखो. ॥ टेर ॥ स्पर्श रसना घ्राण नेत्र फुनि श्रवण पंच यह सारा । स्पर्श' रस फुनि गंध वर्ण स्वर यह इनका विषयारा ॥देखो. ॥१॥ क्षुधा तृषा अरु राग द्वेष रुज सप्तधातु दुखकारा । वादर सूक्ष्म स्कंध अणु आदिक मूर्तिमई निरधारा ॥देखो. ॥ २ ॥ काय वचन मन स्वासोच्छास सजू थावर त्रस करि द्वारा बुधमहाचन्द्र चेतकरि निशिदिन तजि पुद्गल पतियारा ॥देखो. ॥ ३ ॥
(२२९) चिदानन्द भूलि रह्यो सुधिसारी । तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥ चिदानन्द ॥ टेर ॥ मोह उदयनै सबही तिहारो१ जनक मातसुत नारी । मोह दूरि कर नेत्र २ उघारो इनमें कोइ न तिहारी ॥चिदा. ॥ १ ॥ झाग समान जीवना जोविन'३ पर्वत नालाकारी । धन पद रज समान सबन को जात न लागै बारी" ॥चिदा. ॥ २ ॥ जूवा मांस मद्य अरू वेश्या हिंसा चोरी जारी । सप्तव्यसन में रत्त" होयके निज कुल कीनी कारी१६ ॥चिदा. ॥ ३ ॥ पुन्य पाप दोनों लार चलत हैं यह निश्चय उरधारी । धर्म द्रव्य तोय स्वर्ग पठावै पाप नर्क में डारी ॥चिदा. ॥ ४ ॥ आतम रूप निहार भजो जिन धर्म मुक्ति सुखधारी । बुध महाचन्द्र जानि यह निश्चय जिनवर नाम सम्हारी |चिदा. ॥ ५ ॥
(२३०) जीव निज° रस राचन" खोयो यो तो दोष नही करमन को ॥ टेर ॥ पुद्गल भिन्न स्वरूप आपणू२२ सिद्ध समान न जोयो२३ ॥१॥टेर । विषयन के संग रक्त होय के कुमती सेजां सोयो ।
१.परिवार २.जिसमें ३.अलग ४.फिर ५.स्पर्श आदि सभी ६.विषय-भोग ७.निश्चित किया ८.सावधान होकर ९.विश्वास ।१०.मेरा, मेरा ११.तुम्हारा १२.आँखें खोलो १३.यौवन १४.देर १५.लीन १६.काली १७.साथ १८.मेजता है १९.डाला २०.आत्म स्वरूप २१.लीन २२.अपना २३.देखा २४.बिस्तर, सेज।
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