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(३२)
कवि रामकृष्ण
कवि रामकृष्ण ने अपने पद (पद० ४२६) में आत्मा की खोज स्वयं अपने ही हृदय में करने की सलाह दी है। उन्होंने आत्मा को अमर, निरञ्जन, अरूप, अगम और अपार माना है तथा काठ में अग्नि और दूध में घृत के उदाहरण द्वारा उसका स्पष्टीकरण करने का प्रयत्न किया है । कवि रामकृष्ण के बाह्याडम्बर का विरोध करते हुए विवेक पूर्वक तीर्थ, जप, तप, संयम और भेद - विज्ञान के द्वारा आत्मा को पहचान कर मानव को आत्म-कल्याण की ओर प्रवृत्त करने का प्रयत्न किया है।
कवि रामकृष्ण का समय अज्ञात है किन्तु अनुमानत: वे २० वीं सदी के मध्यकाल के कवि प्रतीत होते हैं ।
कवि भंवरलाल -
सन्त कवियों के सदृश कवि भंवरलाल ने आत्मा और शरीर की भिन्नता का ज्ञान करानेवाले सतगुरु को श्रेष्ठ माना है । कवि के अनुसार शुद्ध, बुद्ध एवं निर्मल आत्मा ही परमात्मा है। उसके उद्बोधन में भूत, वर्तमान, भविष्य तीनों ही एक साथ झलकने लगते हैं। उक्त कवि भी वर्तमान सदी में मध्यकाल के साधक प्रतीत होते हैं।
कवि नाथूराम -
कवि के दो पद (सं०५५८, ५५९) प्रस्तुत ग्रन्थ में संग्रहीत है उन्होंने संसार की क्षणिकता और नश्वरता पर अच्छा प्रकाश डाला है। उसके लिए “मधुविन्दु” का दृष्टान्त प्रस्तुत करते हुए मनुष्य की लोलुप - वृत्ति को दर्शाया है, साथ ही उन्होंने सतगुरु की शिक्षा को शिरोधार्य कर मानव को विषय-भोगों का त्याग करने की सलाह दी है। कवि का समय इस सदी का मध्यकाल प्रतीत होता है।
कवि बाजूराय
बाजूराय एक अध्यात्मवादी सन्त कवि है । उसने धर्म साधना को ही मनुष्य के लिए कल्याणकारी मार्ग बतलाया है और उसे उसकी शरण ग्रहण करने की सलाह दी है। कवि ने आत्मा की अमरता का उद्घोष करते हुए बतलाया है कि यह न तो पानी में डूबती है और न ही अग्नि में जलाए जाने पर जलती है। इसका कल्याण धर्म के द्वारा ही सम्भव है । कवि का समय अनुमानत: वर्तमान सदी का मध्यकाल होना चाहिए ।
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