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(५३)
(१५६)
राग - मल्हार
बरसत ज्ञान सुनीर' हो, श्री जिनमुख घन सों शीतल होत सुबुद्धि मेदिनी मिटत भवातपपीर स्याद्वाद नयदामिनी दमकै, होत निनाद' गंभीर करुना नदि बहै चहुंदिशितै, भरी सी दोई तीर 'भागचंद्र' अनुभव मंदिर को, तजत न संत सुधीर ॥ बरसत. ॥ ४ ॥
॥ बरसत. ॥
(१५७)
राग-मल्हार
मेघ घटासम श्री जिनवानी ॥ टेक ॥
स्यात्पद चपला ँ चमकत जामें बरसत ज्ञान सुपानी' ॥ मेघ. ॥ १ ॥ धरमसस्य' जातैं बहु बाढ़, शिव आनंद फलदानी ॥ मेघ. ॥ २ ॥ मोहन धूल दबी सब यातैं, क्रोधानल" सु बुझानी ॥ 'भागचंद्र' बुधजन केकी १२ कुल, लखि हरखै चितज्ञानी ॥
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मेघ. ॥
३ ॥
(१५८) - कलिंगड़ा
॥ टेक ॥
॥ बरसत.
॥ बरसत.
(१५९)
राग - दीपचंदी कार
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॥
॥
मेघ. ॥
४ ॥
टेक ॥
॥ केवल. ॥
२ ॥
केवल जोति सुजागी जी, जब श्री जिनवर के ॥ लोकालोक विलोकत जैसे, हस्तामल बड़भागी जी ॥ केवल. ॥ १ ॥ हार चूड़ामनि शिखा सहज ही नम्र भूमितैं लागी जी समवसरन रचनासुर कीन्हीं, देखत भ्रम जन त्यागी जी भक्ति सहित अरचा '३ जब कीन्ही, परम धरम अनुरागी जी दिव्यध्वनि सुनि सभा दुवादश४, आनंद रस में पागीजी 'भागचन्द' प्रभु भक्ति चहत हैं, और कछु नहि मांगीजी
॥
केवल. ॥ ३ ॥
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जानके सुज्ञानी, जैनवानी की सरधा लाइये ॥ टेक ॥ जा बिन काल अनंते भूमता, सुख न मिलैं कहुं प्राणी ॥ जान. ॥
१ ॥
१ ॥
२ ॥
३ ॥
॥
केवल. ॥ ४॥
॥ केवल. ॥ ५ ॥
॥ केवल. ॥ ६ ॥
१. अच्छाजल २. पृथ्वी ३. संसार की गर्मी की पीड़ा ४. बिजली ५. आवाज ६. दोनों ७. बिजली ८. अच्छा पानी ९. धर्मरूपी धान १०. मोह रूपी धूल ११. क्रोध रूपी आग १२. मयूर-समूह १३. पूजा १४. बारह प्रकार की सभा १५. लीन ।
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