________________
(५५)
(१६२)
वीर हिमाचल' तैं निकसी गुरु गौतम के मुख कुंड ढरी है मोहमहाचल' भेद चली, जगकी जड़ता तप दूर करी है ज्ञान पयोनिधिमांहि रली, बहु' भंग तरंगानि सों उछरी है ता शुचि शारद गंगनदी प्रति, मैं अंजुरी करि सीस धरी है ॥ या जग मंदिर में अनिवार अज्ञान अंधेर छयो अतिभारी श्री जिनकी धुनि दीपशिखा सम जो नहि होती प्रकाशन हारी ॥ तो किहभांति पदारथ पांति कहां लहते रहते अविचारी । या विधि संत कहैं धन हैं धन हैं जिन वैन बड़े उपगारी ॥ या वाणी के ज्ञान तैं सूझै लोकालोक सो वाणी मस्तक धरुं सदा देत हूं धोक ॥
(१६३)
कैसे करि केतकी कनेर एक कही जाय, आक दूध" गाय दूध अंतर १२ घनेर है । पीरी १३ होत री री पैन रीस ४ करै कंचन" की,
०
कहां काग वानी कहां कोयल की टेर है । कहाँ भान भारौ । १६ कहाँ आणि या विचारौ कहाँ, पूनो को उजारौ कहाँ मावस ७ अंधेर है । पच्छ छोरि पारखी निहारौ नेक नीके करि, जैन वैन और वैन इतनौं ही फेर है ।
महाकवि द्यानत (पद ९६४ - १६६) (१६४) समझत क्यों नहीं वानी, अज्ञानी जन ॥ टेक ॥ स्याद्वाद अंकित सुखदाय भागी" केवलज्ञानी ॥ समझत. ॥ १ ॥ जास९ लखँ निरमल पद पावै, कुमति कुगति की हानी । उदय भयाजिह में परगासी सिंह जानी सरधानी ॥ समझत. ॥ २ ॥ जामें देव धरम गुरु बरनें तीनों मुकति निसानी ॥ निश्चय देव धरम गुरु आतम जानत विरला प्रानी ॥ समझत. ॥ ३ ॥
१. वीर रूपी हिमालय से २. मोहरूपी पर्वत को तोड़ कर ३.समुद्र में ४. मिलना ५. न्याय रूपी तरंगे ६. हाथ जोड़कर ७. किस प्रकार ८. पदार्थों को ९. उपकारी १०. किस तरह ११. अकौउत का दूध १२. बहुत अंतर १३. पीली १४. समानता १५.सोना १६. सूर्य १७. अमावस्या १८. भाग्यशाली १९. जिसको २० प्रकाशित ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org