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(५९) ज्ञान विराग सुगुन तुम तिनकी प्रापतिहित सुरपति तरसावै । मुनि बडभाग लीन तिरमें नित 'दौल' धवल उपयोग रसावै ॥३॥
(१७४)
जबलैं आनंद-जननि दृष्टि परी भाई। तबलैं संशय विमोह भरमता बिलाई ॥ जबलैं. ॥टेक ॥ मैं हूं चित चिन्ह भिन्न परतें पर जड़ स्वरूप, दोउन की एकता, सु, जानी दुखदाई॥ जबलैं. ॥१॥ रागादिक बंध हेतु, बंधन बहु विपति देत, । संवर हित जानि तासु, हेत ज्ञानताई ॥ जबलैं. ॥ २ ॥ सब सुख नय शिव हैं तसु, कारन विधि झारन इमि, तत्व की विचारन जिन बानि सुधि कराई ॥ जबलैं. ॥३॥ विजय चाह ज्वालतें दइयो अनंत कालतें, सुधांबुस्यात्पढांक गाहा प्रशांति आई ॥ जबलैं. ॥४॥ या बिन जगजाल में न शरन तीन काल में, सम्भाल चित भंजो सदीव, दौल यह सहाई ॥ जबलैं. ॥ ५ ॥
बुधमहाचन्द्र (पद १७५-१७९)
(१७५) मैं कैसे शिव जाऊँ रे डिगर भूलावनी ॥ मैं कैसे. ॥टेर ॥ बालपने लरकन संग खोयो, त्रिया' संग जवानी ॥ मैं कै. ॥ १ ॥ वृद्धभयो सब सुधिर गई भजि जिनवर नाम न जानी ॥ मैं कै. ॥ २ ॥ भव वन में डिगरी २ बहु परती१२ दुख कंटक भरितानी" ॥ मैं कै ॥ ३ ॥ कामचोर ढिग मोह बढे दोऊ मारगमांही निसानी ॥मैं कै ॥ ४ ॥ ऐसे मारग बुधमहाचन्द्र तू जिनवर बचन पिछानी५ ।मैं कै ॥ ५ ॥
(१७६) जिनवाणी गंगा जन्म मरण हरणी'६॥ जन्म. ॥ टेर ॥ जिन उर पद्म कुण्ड में तें निकसी मुख ही में गिर गिरणी८ ॥१॥
१.प्राप्त करने के लिए २. आनंद देने वाली ३. छिप गई ४. चेतन स्वरूप ५. जड़ चेतन की ६. कर्मों को नष्ट करना ७. विषयों की इच्छा रूपी ज्वाला ८.रास्ता ९. लडकों के साथ १०. स्त्री के साथ ११. बद्धि नष्ट हो ग
गई १२. रास्ते १३. पड़ते हैं १४. भरे हुए १५. पहचानी १६. हरन करने वाली १७. कमल १८. गिरने वाली।
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