________________
(६१)
(१७९) जग में जगती जिनवानी रे, जग में जगती जिनवानी । भवतारण' शिव सुख कारण ॥जग में ॥टेर । स्याद्वाद की कथनी वाली सप्त भंग जानी, सप्त तत्व निर्णय में तत्पर नव पदार्थ दानी ॥ भवतारण. ॥ १ ॥ मोह तिमिर अंधन को जो है ज्ञान शलाकानी । मिथ्यातप तप तन को जो है मलयागर खानी ॥ भवतारण. ॥ २ ॥ इस पंचम कलिकाल मांहि जे है केवली समानी । धर्म कुधर्म कुदेव देव गुरु कुगुरु बतानी ॥ भवतारण. ॥ ३ ॥ इन्द्र धरणेन्द्र खगेन्द्रादिक पदकी निसानी । विषयादिक विष विध्वंस कर सेव सुख सुधापानी ॥ भवतारण. ॥ ४ ॥ कुमग गमन करता भविजन कू सुद्ध मग जितानी । जड़ पुद्गल रत बुधमहाचन्द्र कू निजपर समझानी ॥ भवतारण. ॥ ५ ॥
कवि भागचंद (पद १८०-१८१)
(१८०) थांकी तो वानी में हो जिन स्वपर प्रकाशक ज्ञान || टेक ॥ एकीभाव भये जड़ चेतन तिनकी करत पिछान ॥ थांकी. ॥ १ ॥ सकल पदार्थ प्रकाशत जामें, मुकुर२ तुल्य अम्लान ३ ॥ थांकी. ॥ २ ॥ जग चूड़ामनि शिव भये ते ही तिन कीनो सरधान ॥ थांकी. ॥ ३ ॥ भागचन्द्र बुधजन ताहीका, निशदिन करत बखान ॥ थांकी. ॥ ४ ॥
(१८१) म्हांकै५ घट जिनधुनि अब प्रगटी ॥टेक ॥ जागृत दशा भई अब मेरी सुप्त दशा विघटी६ ।। जल रचना दीसत अब मोको जैसी रहटधरी" ॥ म्हांकै. ॥१॥ विभ्रम तिमिर हरन निज दृग की जैसे अंजन बटी । तातें स्वानुभूति प्रापतितै, पर परनति सब हटी ॥ म्हाकै ॥२॥ ताके बिन जो अवगम१ चाहै तो शठ कपटी । १. संसार २. संसार से तारनेवाली ३. मोक्ष सुख ४. मोह अंधकार ५. शलाका ६.मलय चंदन ७. इन्द्रियों के विषय ८. नष्ट करना ९. मार्ग १०. शुद्ध मार्ग ११. आपकी १२. दर्पण १३. निर्मल १४. उसी का १५. मेरे १६. दूर हो गई १७. दिखाई देती है १८. मुझ को १९. रहट की छरियाँ २०. प्राप्ति से २१. समझना ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org