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(१९६) धनि ते साधु रहत वन माही ॥ टेक ॥ शत्रु मित्र सुख दुख सम जाने, दरसन देखत पाप पलाहीं ॥१॥ अट्ठाइस मूल गुण धारै, मन बच काय चपलता नाहीं । ग्रीस शैल शिखर हिम तरिनी, पावस वरखा अधिक सहाही ॥२॥ क्रोध मान छल लोभ न जानै राग दोष नाहीं उनपाही अमल अखण्डित चिद्गुण मंडित ब्रह्मज्ञान में लीन रहाही ॥३॥ तेई साधु लहै केवल पद, आठ-आठ दह शिखपुर जाहीं । 'द्यानत' भवि तिनके गुण गावें पावै शिवतुख दुख नसाही ॥ ४ ॥
(१९७) धनि धनि ते मुनि गिरिवन वासी ॥टेक ॥ मार मार जग जार जारते द्वादस ब्रत तप अभ्यासी ॥१॥ कौड़ी लाल पास नहिं जाके जिन छेदी आसा' पासी । आतम२ आतम पर-पर जाने, द्वादस तीन प्रकृति नासी ॥ २ ॥ जा दुख देख दुखी सब जग द्वै सो दुख लख सुख द्वै तासी । जाको सब जग सुख मानत है सो सुख जान्यो" दुखरासी ॥३॥ बाहज भेष कहत अंतर गुण, सत्य मधुर हितमित भासी । 'द्यानत' ते शिव पथिक हैं पांव परत पातक ८ जासी ॥४॥
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राग असावरी भाई ! कौन धरम हम पालैं ॥टेक ॥ एक कहें जिहि कुल में आये, ठाकुर को कुल गालै ॥ भाई ॥१॥ शिवमत बौध सु वेद नयायक,° मीमांसक अरु जैना । आप सराहैं आगम गाहैं,२२ का की सरधा ऐना ॥ भाई. ॥२॥ परमेसुर२३ पै हो आया हो, ताकी बात सुनीजै । पूंछे बहुत न बोले कोई, बड़ी फिकर क्या कीजै ॥ भाई. ॥३॥
१. भाग जाता है २. ग्रीष्म ३. पर्वत की चोटी ४. उनके पास ५. अष्ट कर्म ६. धन्य ७. पहाड़ों और नगरों में रहने वाले ८. संसार जलाने वाले ९. बारह १०. काटा ११. आशा का जाल १२. स्वपर १३. जिस दुख को देखकर १४. सुख होता है १५. सुख जाना १६. बाह्य स्वरूप १७. हिलमिल बोलने वाले १८. पाप जायेंगे १९. बोलते हैं २०. नैयायिक २१. प्रशंसा करते हैं २२. अवगाहन करना २३. परमेश्वर के पास हो २४. बड़ी चिन्ता।
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