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जिनस्तुति (पद १-१०८)
(१)
राग - अलहिया चन्द जिनेसुर नाथ हमारा, महासेनसुत लगन पियारा' । चन्द.। टेक । सुरपति फनपति नरपति सेवन, मानि महा उत्तम उपगारा' । मुनिजन ध्यान धरत उर' मांही, चिदानन्द पदवी का धारा। चन्द. ॥ १ ॥ चरन शरन 'बुधजन' जे आए, तिन पायो पद सारा । मंगलकारी भवदुखहारी, स्वामी अद्भुत उपमावारा । चन्द. ॥ २ ॥
राग - लहरी अहो ! देखो केवलज्ञानी, ज्ञानी छवि भली या विराजै हो - भली या विराजै हो ॥ अहो ॥ टेक ॥ सुर नर मुनि याकी सेव करत हैं करम हरन के काजै ॥ अहो ॥ १ ॥ परिग्रह रहित प्रतिहार जुत, जग नायकता छाजै हो । दोष बिना गुन सकल सुधारस, दिविधुनि' ° मुखतै गाजे हो। अहो ॥ २ ॥ चितमें चितवत ही छिनमांहीं,१ जन्म - जन्म अघ२ भाजै१३ हो । याकों कबहुँ न विसरो, अपने हित के काजै५ हो। अहो ॥ २ ॥
राग - पूरवी भजन बिन यौँ ही६ जनम गमायो७ ॥ भजन. ॥ टेक ॥ पानी पैल्यां८ पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो ॥ भजन. ॥ १ ॥
१. प्यारा २. उपकारी ३. हृदय में ४. उत्तम पद ५. संसार का दुःख हरने वाले ६. उपमा वाला ७. अच्छी ८. प्रातिहार्य सहित ९. सुशोभित होती है । १०. दिव्य ध्वनि ११. क्षण में १२. पाप १३. भाग जाते हैं १४. भूलो १५. लिए १६. व्यर्थ में १७. खोया १८. पहले।
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