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महाकवि दौलतराम
(पद १०३ - १०८) (१०३) जय श्रीवीर जिनेन्द्र चन्द्र शतइन्द्र' वंध जगतारं ॥ जय. ॥ टेक ॥ सिद्धारथ कुल' कमल अमल रवि भवभूधर' पवि' भारं 1 गुन मनि कोष अदोष मोषपति, विपिन कषायतुषारं ॥ जय. ॥ १ ॥ मदनकदन' शिवसदन पद- निमिति, नित अनमित यतिसारं । रमा अनंत कंत अन्तककृत, अन्त जंतु हितकारं ॥ जय ॥ २ ॥ फंद चन्दा कन्दन दादुर दुरित" तुरित निर्वारं १३ रुद्ररचित अतिरुद्र उपद्रव, पवन अद्रिपति सारं ॥ जय. अन्तातीत अचिन्त्य सुगुन तुम, कहत लहत" को पारं है जग मौल 'दौल' तेरे क्रम, नमै शीसकर धारं ॥जय. ॥ ४ ॥
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(१०४) जय शिव कामिनी कन्त वीर भगवन्त अनन्त सुखाहर हैं विधि'७ गिरि गंजन" बुध मन रज्जन, भ्रम तम भंजन भास्कर" है ॥ टेक ॥ जिन उपदेश्यो दुविध धर्म जो सो सुर सिद्धि रमाकर है । भवि उर° कुमुदनि मोदन" भवतप" हरन अनूप निशाकर ३ है॥ १ ॥ परम विरागि रहे जतैं पै, जगत जनतु रक्षाकर हैं । इन्द्र फणीन्द्र खगेन्द्र चन्द्र जग, ठाकर ताके २४ चाकर जासु अनन्त सगुन मनिगन नित गनतै २६ मुनिगन थाक २७ रहैं । जा प्रभुपद नव केवल लब्धिसु, कमला को कमला कर हैं ॥ जय. ॥ ३ ॥ जाके ध्यान कृपान २८ रागरुष, पासहरन २९ 'दौल' नमै कर जोर हरन भव बाधा
- २५ है ॥ जय. ॥ २ ॥
समताकर हैं ।
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शिवराधाकर है ॥ जय. ॥ ४॥
१. सैकड़ों इन्द्रों से बंदनीय २. कुल रूपी कमल ३. सूर्य ४. संसार रूपी पहाड़ ५. बज्र ६. मोक्ष पति ७. कषाय के लिए तुषार ८. काम नष्ट करने वाला ९. हित करने वाला १०. मेढक ११. पाप १२. शीघ्र १३. दूर करने वाला १४. अत्यन्त भयंकर १५. कौन पार पायेगा १६. संसार के मुकुट १७. कर्म पहाड़ १८. नष्ट करने वाले १९. सूर्य २०. भव्य - ह्रदय २१. खिलाने वाले २२. संसार ताप को दूर करने वाले २३. चन्द्रमा २४. उसके २५. नौकर २६. गिनते हुए २७. थक गये २८. तलवार २९. जाल काटने वाले ३०. संसार- दुख ।
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