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(१००) जिनराज शरण में तेरी सुन पुकार मेरी टेरी ॥ मैं प्रभु तुझे भुलाया चैन कभी न पाया ॥ भव भव में बहुत भटकाया शरण मिला नहीं केरी । भव सिन्धु बड़ा है भारी इसमें बहा जात संसारी ॥ किस विध नैया वये' हमारी मेटो न भव की फेरी । कर्मों ने बहुत सताया कई नर्क निगोद दिखाया । घोर अली दुःख पाया आया हूं शरण तेरी ॥
ओ मेरो कष्ट निवारो' अब नहीं हो कोई सहारो । ‘भूरामल' शरण थारी करना न नाथ देरी । जिन राज शरण मैं तेरी सुन तू पुकार मेरी ॥
(१०१) श्रीवीर की धुन में जब तक मन न लगायेगा ॥टेक ॥ जंजाल से छूटने का मौका न पायेगा ॥ व्यापार धन कमाकर तू लाख साज सजाले । होगा खुशी न जब तक संतोष धन न कमायेगा । जप होम योग पूजा, व्रत और नेम करले । सब है विरथा' जब तक वीर नाम न गायेगा । संसार की घटा से क्या प्यास बुझ जायेगी । कर संचय अपना धन जो काम आयेगा । लगाले प्रेम वीर प्रभू से आंखें जरा सी खोलो। 'भूरामल' जा शरण उसकी बन्धन छूट जायेगा ॥
(१०२) वीर भजन मन गाओ जैसे प्रेम पदारथ पाओ । जा सुमरा सुख सम्पत होवे, जन्म जन्म सुख पाओ । पतित पावन नाम जिनका, शरणा उन्हीं के जाओ । क्रोध लोभ को दिल से हटाकर वीर चरण चितलाओ ।। प्रेमभाव से चित लगाकर वीर से प्रेम बढ़ाओ । वीर प्रभू का चरण कमल में 'भूरामल' नित शीश नवाओ । १. पार हो २. दूर करो ३. आपकी ४. प्रसन्न ५. व्यर्थ ६. बादल ७. हमेशा ८. मस्तक ।
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