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(१०७) चन्द्रानन' जिन चन्द्रनाथ के, चरन चतुर चित ध्यावतु' है । कर्म चक्र चकचूर चिदातम, चिन्मूरत पद पावतु' है ॥ चन्द्रा. ॥ टेक ॥ हा हा हूह' नारद तुंबर जास अमल यश गावतु है । पद्मा सची शिवा श्यामादिक, करधर बीन बजावतु है । चन्द्रा. ॥ १ ॥ बिन इच्छा उपदेश मांहि हित, अहित जगत दरसावतु है। जा पदतट सुर नर मुनि घटचिरु, विकटविमोह नशावतु है ॥२॥ जाकी चन्द्र वरन तन द्युतिसों, कोटिक सूर छिपावतु है ।। आतम ज्योत उद्योतमाहि सब, ज्ञेय अनंत दिपावतु है ॥ ३ ॥ नित्य उदय अकलंक अछीन सु मुनि उडु चित्त रमावतु है । जाकी ज्ञान चन्द्रिका लोकालोक मांहि न समावतु २ है ॥४॥ साम्यसिन्धु वर्द्धन जग नंदन को शिर हरिगण नावतु है । संशय विभ्रम मोह ‘दौल' कोहर" जो जग भरमावतु है॥ ५ ॥
(१०८) जय जिन वासुपूज्य शिवरमणी रमन मदन दनु१६ दारन हैं। बालकाल संजम संभाल रिपु मोह व्याल बल मारन हैं ॥ १ ॥ जाके पंच कल्यान भये चंपापुर में सुख कारन हैं । वासव" वृंद अमंद मोद धर किये भवोदधितारन हैं ॥ जय. ॥ जाके बैनसुधा,९ त्रिभुवन जन को भ्रमरोग बिदारन हैं। जा गुन चिंतन अमल अनल मृत जनम जरावन२२ जारन हैं ॥ ३ ॥ जाकी अरुन शांति छवि रविभा,२२ दिवस प्रबोध प्रसारन है । जाके चरन शरन सुर तरु वांछित शिवफल विस्तारन है ॥ जय. ॥ ४ ॥ जाको शासन सेवत मुनिजे, चार ज्ञानके धारन हैं । इन्द्र फणीन्द्र मुकुटमणि द्युतिजल" जापद कलिल पखारन२६ हैं ॥ ५ ॥ जाकी सेव अछेवरमाकर२७ चहुँगति विपति उधारन है । जा अनुभव घनसार“ सु आकुल ताप कलाप निवारन है ॥६॥ द्वादशभों जिन चन्द्र जास वर, जस" उजास२° को पार न हैं। १. चन्द्रमुख २. ध्यान करते है ३. पाते हैं ४. आनंद पूर्ण ध्वनि ५. कोलाहल ६. कमला ७. इन्द्राणी ८. पार्वती श्यामा = राधा ९. नष्ट करता है १०. सूर्य ११. छिपाता है १२: समाती है १३. सिर १४. देवता १५. दूर करना १६. दानव १७. सर्प १८. इन्द्रगण १९. वचन रूपी अमृत २०. नष्ट करने वाले २१. आग २२. जलाने वाले २३. सूर्य की प्रभा २४. फैलाने वाले २५. चमक २६. धोने वाले २७. निर्दोष २८. चंदन २९. यश ३०. प्रकाश ।
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