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(१२२) आगम अभ्यास होहु सेवा सरबग्य' तेरी, संगति सदीव मिलौ साधरमी जनकी। सन्तन के गुनको बखान यह बान' परौ मेटो टेव देव पर औगुन कथन की। सबही सौं एन सुखदैन मुख वैन भाखौ', . भावना त्रिकाल राखौं आतमीक धन की। जोलौं, येही बात हूजौ प्रभु पूजा आस मन की ।।
महाकवि द्यानत (पद १२३-१२५)
(१२३)
राग काफी धमाल सोज्ञाता मेरे मन माना जिन निज निज पर पर जाना ॥ टेक ॥ छहों दरवरौं भिन्न जानके नव तत्वन” आना । ताकौ देखे ताकों जानै ताही के रस में साना॥ सो ज्ञाता. ॥ अखय१ अनंती सम्पति विलसै भव तन भोग मगन ना। 'द्यानत ताऊपर बलिहारी, सोई जीवन मुक्त भना२ ॥ सो ज्ञाता. ॥
(१२४) दरसन तेरा मन३ भावै ॥ दरसन. ॥ टेक ॥ तुमको देरिव श्रीपति नहिं सुरपति, नैन हजार बनावै ॥ दर. ॥१॥ समोसरन में निरखें सचिपति, जीभ सहस गुन गावै । कोड़६ काम को रूप छिपत है, तेरा, दरस सुहावै॥ दर. ॥ २ ॥
आँच लगै अंतर है तो भी, आनंद उर न समावै । ना जानों कितनों सुख हरिको जो नहि पलक लगावै। दर. ॥ ३ ॥ पाप नास की कौन बात है, 'द्यानत' सम्यक पावै । आसन ध्यान अनूपम स्वामी, देखै" ही बन आवै ॥ दर. ॥ ४ ॥
१.सर्वज्ञ २.आदत पड़ी है ३.आदत नष्ट करदो ४.दूसरों के दोष ५.कहो ६.पूरी करो ७.वह ८.स्वरपर ९.द्रव्यों से १०.लीन, सना हुआ ११.अक्षय १२.कहा गया १३.मन को अच्छा लगता १४.इन्द्र १५.इन्द्र १६.करोड़ १७.देखते ही बनता है।
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