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राग - सोरठ देखो ! भेक फूल लै निकस्यों, विन पूजा फल पायो ॥ टेक ॥ हरषित भाव मर्यो गज' पग तल, सुरगत अमर कहायो ॥ देखो. ॥ मालिनी सुता देहली पूजी, अपछर इन्द्र रिझायो । हाली' चरू सों दृढ़ व्रत पाल्यो दारिद तुरत नसायो ॥ देखो. ॥ २ ॥ पूजा टहल करो जिन पुरुषनि, तिन सुरभवन बनायो । चक्री भरत नयौ जिनवर को, अवधिज्ञान उपजायो । देखो. ॥ ३ ॥ आठ दरब लै प्रभुपद पूजै, ता पूजन सुर आयो । 'द्यानत' आप. समान करत हैं सरधा सों सिर नायो ॥ देखो. ॥ ४ ॥
कवि जिनेश्वरदास (पद १२६-१२९)
प्रभाती जयवंतो जिनविंब जगत मैं, जिन देखत निज पाया ॥ टेक ॥ वीतरागता लखि प्रभुजी की, विषयदाह विनशाया है । प्रगट भयो संतोष महागुण मन थिरता में आया है ॥ जय. ॥ १ ॥ अतिशय ज्ञान शकासन पै धरि, शुक्ल ध्यान शर वाह्या है । हानि र मोह अरि चंद चौकड़ी वह स्वरूप दिखलाया है ॥ २ ॥ वसुविधि अरि हरि करि शिवथानक' थिर स्वरूप ठहराया है। सो स्वरूप शचि स्वयं सिद्ध प्रभू ज्ञान रूप मन भाया है ॥ जय. ॥ ३ ॥ यदपि अचेत तदपि चेतन को, चित स्वरूप दिखलाया है। कृत्या कृत्य 'जिनेश्वर' प्रतिमा पूजनीय गुरु गाया है ॥ जय. ॥ ४ ॥
__(१२७) म्हेतो५ थापर वारीजी जिनंद चतुरानन सुखकंद ॥ टेक ॥ सिंहासन पर आप विराजै पद्मासन महाराज। तीन छत्र शिर सोहने, चौसठि चमर समाज ॥ म्हेतो. ॥ १ ॥ तेजवंत देही दिपै कोटिक' सूर लजात । १.मेंढक २.निकला ३.हाथी के पैर के नीचे ४.अप्सरा ५.जल्दी ६.नैवेद्य ७.जिन-मूर्ति ८.आत्म स्वरूप पाया ९.स्थिरता १०.धनुष ११.वाण १२.मोह रूपी दुश्मन का नाश १३.आठ कर्मों का नाश कर १४.मोक्ष १५.मैंतो १६.आप पर १७.निछावर हूं १८.करोड़ों सूर्य लज्जित होते हैं।
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