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________________ (४३) (१२५) राग - सोरठ देखो ! भेक फूल लै निकस्यों, विन पूजा फल पायो ॥ टेक ॥ हरषित भाव मर्यो गज' पग तल, सुरगत अमर कहायो ॥ देखो. ॥ मालिनी सुता देहली पूजी, अपछर इन्द्र रिझायो । हाली' चरू सों दृढ़ व्रत पाल्यो दारिद तुरत नसायो ॥ देखो. ॥ २ ॥ पूजा टहल करो जिन पुरुषनि, तिन सुरभवन बनायो । चक्री भरत नयौ जिनवर को, अवधिज्ञान उपजायो । देखो. ॥ ३ ॥ आठ दरब लै प्रभुपद पूजै, ता पूजन सुर आयो । 'द्यानत' आप. समान करत हैं सरधा सों सिर नायो ॥ देखो. ॥ ४ ॥ कवि जिनेश्वरदास (पद १२६-१२९) प्रभाती जयवंतो जिनविंब जगत मैं, जिन देखत निज पाया ॥ टेक ॥ वीतरागता लखि प्रभुजी की, विषयदाह विनशाया है । प्रगट भयो संतोष महागुण मन थिरता में आया है ॥ जय. ॥ १ ॥ अतिशय ज्ञान शकासन पै धरि, शुक्ल ध्यान शर वाह्या है । हानि र मोह अरि चंद चौकड़ी वह स्वरूप दिखलाया है ॥ २ ॥ वसुविधि अरि हरि करि शिवथानक' थिर स्वरूप ठहराया है। सो स्वरूप शचि स्वयं सिद्ध प्रभू ज्ञान रूप मन भाया है ॥ जय. ॥ ३ ॥ यदपि अचेत तदपि चेतन को, चित स्वरूप दिखलाया है। कृत्या कृत्य 'जिनेश्वर' प्रतिमा पूजनीय गुरु गाया है ॥ जय. ॥ ४ ॥ __(१२७) म्हेतो५ थापर वारीजी जिनंद चतुरानन सुखकंद ॥ टेक ॥ सिंहासन पर आप विराजै पद्मासन महाराज। तीन छत्र शिर सोहने, चौसठि चमर समाज ॥ म्हेतो. ॥ १ ॥ तेजवंत देही दिपै कोटिक' सूर लजात । १.मेंढक २.निकला ३.हाथी के पैर के नीचे ४.अप्सरा ५.जल्दी ६.नैवेद्य ७.जिन-मूर्ति ८.आत्म स्वरूप पाया ९.स्थिरता १०.धनुष ११.वाण १२.मोह रूपी दुश्मन का नाश १३.आठ कर्मों का नाश कर १४.मोक्ष १५.मैंतो १६.आप पर १७.निछावर हूं १८.करोड़ों सूर्य लज्जित होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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