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(४९)
तुम भवि भाव भक्ति वस बदत तिनै पाई भव पाज ॥६॥ 'बुध महाचंद' चरण चर्चन करि जाचे अजाचिक' राज ॥ ७ ॥
(१४४) सुफल घड़ी याही देखें जिन देव ॥सुफल. ॥टेर ।। मनतो सुफल तुम चितवन करते, पद जुग तुम पै, आई, नयन, सुफल तुम पद दरशेव ॥ सुफल. ॥१॥ सीस सुफल तुम चरणन, मन नै जीभ सुफल गुण गाइ, हस्त सुफल तुम पद करशेव ॥ सुफल. ॥ २ ॥ श्रवण सुफल तुम गुण सुनने में, जन्म सुफल, भजि सांइ 'बुध महाचंद' जु चर्णन मेव ॥ सुफल. ॥ ३ ॥
रेखता
देखि जिनरूप द्वे नयना हर्ष मन में न माया हो ॥टेर ॥ इन्द्रहु सहस्र नेत्रन रच तुम्हे जिन देखन ध्याया हो ॥ देखि. ॥१॥ धन्य हो । आज का यह दिन तुम्हारा दर्श पाया हो । रंक घर ज्यों सुऋद्धि होतै त्यों हमें हर्ष आया हो ॥देखि. ॥ २ ॥ सफल पद थान यह आने सफल कर पद पर्शवातें ॥ देखि. ॥ ३ ॥
और कछु नाहि मो वांछया सेवा तुम चरण पावा हो । मिलो भव भव भव हमें ये ही सीस महाचन्द्र नाया हो ॥ देखि. ॥ ४ ॥
कवि कुंजीलाल (पद १४६-१४७)
(१४६) मैं कैसे रूप निहारू हा प्रभु जी, धर्म शुक्ल के संग ॥ टेक ।। राग द्वेष मोहादि महाभट, राज्य करें निसंग। क्रोधमान छल लोभ मदादिक फेलि रहे सर्वंग ॥१॥ पांचों इन्द्री बने पारधी१२ खेचत वान निखंग३। कालरूप विकराल केहरी,४ डाढ़५ पसौरे संग ॥ २ ॥ ज्यों ज्यों इन इन्द्रिन पोखी,६ त्यों त्यों भई उतंग७ ।
१. मांगता हूं २. अयाचक ३. दर्शन ४. समाया ५. हजार नेत्र ६. गरीब ७. स्पर्श कराके ८. इच्छा ९. झुकाया १०. शुक्ल ध्यान ११. अकेले १२. शिकारी १३. धनुष १४. सिंह १५. चबाने के दांत १६. पुष्ट की १७. ऊंची; मस्त ।
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