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ज्ञान दरस सुख बल गुनधारी, अनन्त चतुष्टय ध्यावो रे। अवगाहना' अबाध अमूरस, अगुरु अलघु बतलावो रे ॥ २ ॥ करुनासागर गुन रतनागर जोति उजागर भावो रे । त्रिभुवन नायक भवभय घायक, आनंद दायक गावो रे॥ ३ ॥ परम निरंजन पातक भंजन, भविरंजन ठहरावो रे । 'द्यानत' जैसा साहिब' सेवो, तैसी पदवी पावो रे ॥४॥
(७९)
राग - गौरी देखो ! भाई श्री जिनराज विराजै ॥टेक ॥ कंचन मणिमय सिंह पीठ पर, अन्तरीक्ष प्रभु छाजै ॥ देखो. ॥१॥ तीन छत्र त्रिभुवन जस जपै, चौसठि चमर समाजै । वानी जोजन घोर. मोर सुनि, उर अहि पातक भाजै ॥२॥ साढ़े बारह कोड़ दुन्दुभी आदिक बाजे बाजै । वृक्ष अशोक दिपत भामंडल, कोड़ि सूर शशि लाजे ॥ ३ ॥ पहुप वृष्टि जलकन मंद पवन, इन्द्र सेव नित साजै । प्रभु न बुलावै ‘द्यानत' जावै सुर नर पशु निज काजै ॥ ४ ॥
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राग - गौरी अब मोहि तारि लेहु महावीर ॥टेक ॥ सिद्धारथ नंदन जग वंदन, पाप निकन्दन धीर ।।अब. ॥१॥ ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, वानी गहर गंभीर । मोक्ष के कारन दोष निवारन, रोष विदारन वीर ॥अब. ॥ २ ॥ आनंद पूरत समता सूरत, चूरत आपद पीर । बालयती दृढ़व्रती समकिती, दुख दावानल नीर ॥अब. ॥॥ गुरु अनन्त भगवन्त अन्त नहि, शशि कपूर हिम हीर। 'द्यानत' एकहु गुन हम पावै, दूर करें भव भीर अब. ॥ ४ ॥
१. ऊंचाई २. मालिक ३. सोना ४. भागते हैं ५. चमकता है ६. पार कर दो ७. पाप नष्ट करने वाले ८. दुख रूपी दावानल को पानी।
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