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(३०) कर्मफलमांहि न राचे,' ज्ञान सुधा रस पीजै ॥हे जिन. ॥ ३ ॥ मुझ कारज के तुम कारन वर, अरज दौल की लीजै ॥ हे जिन. ॥ ४ ॥
(८९) सब मिल देखो हेली' म्हारी हे, त्रिसला बाल वदन' रसाल ॥सब ॥टेक ॥ आये जुत समवशरण कृपाल, विचरत अभय व्याल मराल फलित भई सकल तरुमाल ॥ सब. ॥१॥ नैनन हाल° भृकुटी न चाल, वैन विदारै विभ्रम जाल, छवि लखि होत संत निहाल २ ॥ सब. ॥ २ ॥ वन्दन काज साज समाज, संग लिये स्वजन पुरजन ब्राज, श्रेणिक चलत हैं नरपाल ॥ सब. ॥ ३ ॥ यों कहि मोद जुत पुरवाल, लखन चाली" चरम५ जिनपाल “दौलत” नमत धर धर भाल'६ ॥ सब. ॥ ४ ॥
(९०) शामरिया के नाम जपे नैं छूट जाय भव भामरिया ॥ शाम. ॥ टेक ॥ दुरित "दुरत पुन पुरत फुरत गुन, आतम की निधि आगरियां । विघटत है परदाह चाह झट, गटकत२२ समरस गागरियां२३ ॥शाम. ॥१॥ कटत कलंक कर्म कलसायन, प्रगटत शिवपुर डागरियां, फटत घटाघन२५ मोह छोहर६ हट, प्रगटत भेदज्ञान घरियां ॥ शाम. ॥ २ ॥ कृपा कटाक्ष तुमारी हीं तें जुगलनाग विपदा टरियां । धार भये सो मुक्ति रमावर, 'दौल' नमै तुव पागरियां° पागरियां ॥ शाम. ॥ ३ ॥
(९१) ध्यान कृपान पानि३२ गहि३३ नासो, त्रेसठ प्रकृति अरी३४ । शेष पचासी लाग रही है, ज्यों जेवरी२५ जरी ॥ध्यान. टेक ॥ दुठ३६ अनंग३७ मालंग३८ भंग कर है प्रबलंग३९ हरी । जा पद भक्ति भक्तजन दुख दावानल मेघझरी ॥ध्यान. ॥१॥ १. लीन होता है २. प्रार्थना (अर्जी) ३. सखी ४. महावीर ५. मुख ६.सुन्दर ७. सर्प ८. हंस ९. वृक्षों की पंक्ति १०. बीच में ११. नष्ट करता है १२. धन्य १३. नगर के लोग १४. चले १५. अन्तिम तीर्थकर १६. मस्तक १७. भव भ्रमण १८. पाप १९. दूर होते हैं २०. फिर २१. प्रगट होते हैं २२. पीते हैं २३. गागर २४. पाप २५. मोह रूपी मेघों की घटा २६. क्षोभ हटकर २७. नाग नागिन २८. टल गई २९. मुक्ति रूपी रमा के पति ३०. पैर, चरण ३१. तलवार ३२. हाथ ३३. लेकर ३४. शत्रु ३५. जली हुई रस्सी ३६. दुष्ट ३७. कामदेव ३८. हाथी ३९. शक्तिशाली सिंह ।
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