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(२८) घाति चतुक अरि चूरे, प्रभु ने पायो शिवथान ॥बंदौ. ॥ ४ ॥ जगमें भविक प्रतिबोध, उत्तम पायो शिवथान ॥बंदौ. ॥ ५ ॥ अरजी जिनेश्वर ये ही मोकों दीज्यों निर्भय थान ॥ ६ ॥
महाकवि दौलत राम
(पद-८४-९६) बन्दौ अद्भुत चन्द्र वीर जिन, भवि चकोर चितहारी ।। बंदौ. ॥ टेक ॥ सिद्धारथ नृप कुल नभ-मंडन, खंडन भ्रमतम भारी । परमानंद जलधि विस्तारन, पाप ताप छयकारी ॥ बंदौ. ॥१॥ उदित निरंतर त्रिभुवन अन्तर, कीरति किरन पसारी ।। दोष मलंक कलंक अटंकित, मोह राहु निखारी ॥ बंदौ. ॥ २ ॥ कर्मावरन-पयोद अरोधित, बोधित शिवमगचारी । गणधरादि मुनि उडुगन सेवत, नित पूनम° विधिधारी ॥ ३ ॥ अखिल अलोकाकाश-उलंघन, जासु ज्ञान उजियारी । दौलत मनसा-कुमुदनि मोदन, २जयों चरम-जगतारी ॥ बंदौ. ॥४॥
जय श्री ऋषभ जिनेन्द्रा । नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा३ । मातु मरुदेवी प्यारे पिता नाभि के दुलारे, वंश तो इख्वाक' जैसे नभबीच चंदा ॥जय श्री. ॥१॥ कनक वरन तन मोहित भविक जन, रवि शशि कोटि लाजै,५ लाजै मकरन्दा ६ ॥२॥ दोष तौ अठारा नासे गुन छियालीस मासे, अष्टकर्म काट स्वामी भये निरफंदा ॥जय श्री. ॥ ३ ॥ चार ज्ञानधारी गनी, पार नाहिं पावै मुनी, दौलत नमत सुख चाहत अमंदा ॥जय श्री.॥ ४ ॥
१. चार घातिया कर्म नष्ट किये २. उपदेश दिया ३. वीर प्रभुरूपी चन्द्रमा ४. भव्यरूपी चकोर ५. आकाश को सुशोभित करने वाले ६. भ्रमरूपी अंधकार ७. फैलाया ८. बादल ९. नक्षत्र १०. पूर्णमासी ११. मन से १२. आनंद देने वाला १३. दुख; द्वन्द्व १४. इक्ष्वाकु १५. लज्जित होते हैं १६. कामदेव १७. संसार जाल से मुक्त हो गये १८. बहुत अधिक।
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