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________________ (२६) E EFFEE ज्ञान दरस सुख बल गुनधारी, अनन्त चतुष्टय ध्यावो रे। अवगाहना' अबाध अमूरस, अगुरु अलघु बतलावो रे ॥ २ ॥ करुनासागर गुन रतनागर जोति उजागर भावो रे । त्रिभुवन नायक भवभय घायक, आनंद दायक गावो रे॥ ३ ॥ परम निरंजन पातक भंजन, भविरंजन ठहरावो रे । 'द्यानत' जैसा साहिब' सेवो, तैसी पदवी पावो रे ॥४॥ (७९) राग - गौरी देखो ! भाई श्री जिनराज विराजै ॥टेक ॥ कंचन मणिमय सिंह पीठ पर, अन्तरीक्ष प्रभु छाजै ॥ देखो. ॥१॥ तीन छत्र त्रिभुवन जस जपै, चौसठि चमर समाजै । वानी जोजन घोर. मोर सुनि, उर अहि पातक भाजै ॥२॥ साढ़े बारह कोड़ दुन्दुभी आदिक बाजे बाजै । वृक्ष अशोक दिपत भामंडल, कोड़ि सूर शशि लाजे ॥ ३ ॥ पहुप वृष्टि जलकन मंद पवन, इन्द्र सेव नित साजै । प्रभु न बुलावै ‘द्यानत' जावै सुर नर पशु निज काजै ॥ ४ ॥ (८०) राग - गौरी अब मोहि तारि लेहु महावीर ॥टेक ॥ सिद्धारथ नंदन जग वंदन, पाप निकन्दन धीर ।।अब. ॥१॥ ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, वानी गहर गंभीर । मोक्ष के कारन दोष निवारन, रोष विदारन वीर ॥अब. ॥ २ ॥ आनंद पूरत समता सूरत, चूरत आपद पीर । बालयती दृढ़व्रती समकिती, दुख दावानल नीर ॥अब. ॥॥ गुरु अनन्त भगवन्त अन्त नहि, शशि कपूर हिम हीर। 'द्यानत' एकहु गुन हम पावै, दूर करें भव भीर अब. ॥ ४ ॥ १. ऊंचाई २. मालिक ३. सोना ४. भागते हैं ५. चमकता है ६. पार कर दो ७. पाप नष्ट करने वाले ८. दुख रूपी दावानल को पानी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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