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________________ (२५) २ ॥ सांप जाप करि सुखद पायो, स्वान श्याल भय जारे । भेक वोक' गज अमर कहाये, दुरमति भाव विदारे भील चोर मातंग गनिका' बहुतनि के दुख टारे चक्री भरत कहा तप कीनौ, लोकालोक निहारे ॥ प्रभु || ३ || उत्तम मध्यम भेद न कीन्हो, आये शरन उवारे । 'द्यानत' राग दोष बिना स्वामी, पाये भाग हमारे ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ (७६) भजि ॥ टेक ॥ ॥ १ ॥ श्रीजिननाम अधार सार अगम अतट संसार उदधितैं, कौन उतारे पार ॥ श्रीजन. कोटि जनम पातक कदैं, प्रभु नाम लेत इकबार ॥ ऋद्धि सिद्धि चरनन सौं लागै, आनंद होत अपार ॥ श्रीजिन. ॥ २ ॥ पशुते धन्य धन्य ते पंखी, सफल करें अवतार । नाम बिना धिक मानव को भव, जल है है छार ॥ श्रीजिन. ॥ ३ ॥ नाम समान आन नहिं जग सब, कहत पुकार पुकार । 'द्यानत' नाम तिहू' पन जपि लै, सुरग मुकति दातार ॥ श्रीजिन. 118 11 (७७) भोर भयो भज श्री जिनराज, सफल होहि तेरे सब काज ॥ टेक ॥ धन सम्पत मन वांछित भोग, सब विधि आन' बनै संजोग ॥ भोर ॥ १ ॥ कल्पवृक्ष ताके घर रहै, कामधेनु नित सेवा वहै । पारस चिन्तामनि समुदाय, हितसों आय मिल समुदाय ॥ भोर ॥ २ ॥ दुर्लभ सुलभ्य है जाय, रोग शोक दुख दूर .१० सेवा देव करैं मन लाय, विघन उलट मंगल ठहराय । भोर ॥ ३ ॥ डांयन भूत पिशाच न छलै, राज चोर करे जोर न चलै । जस आदर सौभाग्य प्रकाश, 'द्यानत' सुरग" मुकति पदवास ॥ भोर ॥ ४ ॥ (७८) रे ॥ टेक ॥ लावो बचन मुख ३ भाषौ, अर्थ में चित्त लगावो रे ॥ १ ॥ अजित नाथ सों मन करसता १२ १. बकरा २. वेश्या ३. बिना किनारे का ४. राख हो जायेगा ५. तीनों लोक ६. सबेरा ७ होगा ८. आकर ९. दुर्लभ से सुलभ हो जाता है १०. भाग जाता है ११. स्वर्ग १२. हाथ से ताली बजाना १३. मुँह से बचन बोलो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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