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(२४) पंच महाव्रत दुद्धर धारे राखी प्रजति पचासी ॥ २ ॥ जाके दरसन इगन विराजत नहि वीरज' सुखरासी । जाको बन्दत त्रिभुवन-नायक लोका लोक प्रकासी ॥ ३ ॥ सिद्ध बुद्ध परमारथ राजै, अविचल थान निवासी । 'द्यानत' मन अलि प्रभु-पद-३-पंकज रमत रमत अघजासी ॥४॥
(७३) प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं ॥ टेक ॥ गरभ छ मास अगाउ कनक नग (?) सुरपति नगर बनावै ॥१॥ छीर उदधि जल मेरु सिंहासन, मलमल इन्द्र न्हुलावै । दीक्षा समय पालकी बैठो, इन्द्र कहार कहावै ॥ प्रभु. ॥ २॥ समोसरन रिध शान महातम किहि विधि सख' बतावै । आपन जात की बात कहा शिव बात सुनै भवि जावै ॥३॥ पंच कल्यानक थानक स्वामी, जे तुम मन वच ध्यावे। 'द्यानत' तिनकी कौन कथा है, हम देखे सुख पावै ॥ प्रभु ॥ ४ ॥
(७४) प्रभु तेरी महिमा कहिय न जाय ॥ टेक॥ थुति करि सुखी दुखी निंदा तें, तेरै समता भाव ॥ प्रभु. ॥१॥ जो तुम ध्यावै, घिर मन . लावै, सो किंचित् सुख पाय । जो नहिं ध्यावै ताहि करत हो, तीन भवन को राय ॥ प्रभु. ॥ २ ॥ अंजन चोर महा अपराधी, दियो स्वर्ग पहुँचाय । कथानाथ श्रेणिक'३ समदृष्टि कियो नरक दुखदाय ॥ प्रभु.॥ ३ ॥ सेव असेव कहा चलै जिसकी जो तुम करो सु न्याय । 'द्यानत' सेवक गुन गहि लीजै," दोष सबै छिटकाय ॥ प्रभु. ॥ ४ ॥
(७५) प्रभु तुम सुमरन ही में तारे ॥ टेक ॥ सूअर सिंह नौल ६ वानर ने, कहो कौन व्रत धारे ॥ प्रभु. ॥ १॥
१. वीर्य २. भौरा ३. प्रभु के चरण कमल ४. पाप दूर हो जायेंगे ५. सोना ६. क्षीर सागर ७. नहलाता ८. सर्ब, सब ९. कहा नहीं जाता १०. स्तुति ११. कुछ १२. राजा १३. श्रेणिक राजा १४. ग्रहण कर लीजिए १५. छटकाना, हटाना १६. नेवला।
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