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________________ (२७) (८१) राग - गौरी जय-जय नेमिनाथ परमेश्वर ॥टेक ॥ उत्तम पुरुषनिको अति दुर्लभ, बाल शील धरनेश्वर ॥जय. ॥ १ ॥ नारायन बहु भूप सेव करें, जय अघ तिमिर दिनेश्वर । तुम जस महिमा हम कहा जाने, भाखि' न सकत सुरेश्वर ॥२॥ इन्द्र सवै मिलि पूजैं ध्यावै जय भ्रम तपत निशेश्वर । गुण अनन्त हम अन्त न पावें, वरन न सकत गनेश्वर ॥३॥ गणधर सकल करै थुति ठा, जय भव जल पोतेश्वर । द्यानत हम छदमस्थ कहा कहैं, कह न सकत सखेश्वर ॥ ४ ॥ (८२) राग - गौरी आदिनाथ तारन तरनं ॥टेक ॥ नाभिराय मरुदेवी नंदन, जनम अजोध्या अघ हरनं ॥१॥ कलपवृच्छ गये जुगल दुखित भये, करम भूमि विधि सुख करनं। अपछर नृत्य मृत्यु लखि चेते, भव तन भोग जोग धरनं ॥ २ ॥ कायोत्सर्ग छमास धर्यो दिढ़, वन खग मृग पूजत चरनं । धीरज धारी बरस अलारी, सहस बरस तप आचरनं ॥ ३ ॥ करम नासि परगासि ज्ञान को, सुखति कियो समोसरनं । सब जन सुख दे शिवपुर पहुँचे, ‘द्यानत' भवि तुम पद शरनं ॥ ४ ॥ कवि जिनेश्वरदास (८३) राग - कसूमी बंदौ जगतपती नामा, तीर्थेश्वर महाराज ॥टेक ॥ तिनके गर्भते पहिले बरसे, रतन बहुभांत ॥ बेदौ. ॥१॥ जिनके जनम की महिमा, गावै सुरगण नार ॥बंदौ. ॥ २ ॥ जिनजी जगत से उदासी, चारी न लीनो संगकाज ॥बंदौ. ॥ ३ ॥ १. बोलना २. जहाज के स्वामी ३. पति-पत्नी (जोड़ा) ४. अप्सरा ५. प्रकाशित करना ६. प्रसिद्ध ७. चलने वाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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