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तुम मुखचंद निहारत ही अब, सब आताप मिटायो । बुधजन हरष भयौ उर ऐसैं, रतन चिन्तामनि पायौ ॥ आयौ. ॥ ३ ॥
(२१)
राग - परज महाराज, थां. सारी लाज हमारी, छत्र त्रय धारी । महाराज. ॥ टेक ।। मैं तौ थारी' अद्भुत रीति, निहारी हितकारी ॥ महाराज. ॥१॥ निंदक तौ दुख पावै सहजै, बंदकर ले सुख भारी । असी अपूरव बीतरागता, तुम छवि मांहिं विचारी ॥ महाराज. ॥ २ ॥ राज त्यागिकैं दीक्षा लीनी, परजन प्रीति निवारी । भये तीर्थंकर महिमाजुत अब, संग लिये रिधि सारी ॥महाराज. ॥ ३ ॥ मोह लोभ क्रोधादिक भारे, प्रगट दया के धारी । बुधजन बिनवे चरन कमल कौं, दीजे भक्ति तिहारी। महाराज. ॥ ४ ॥
(२२) श्रीजिनवर पद ध्यानै जो नर श्री जिनवर पद ध्यावें ॥ टेक ॥ तिनकी कर्मकालिमा विनशै, परम ब्रह्म हो जावें । उपल' अग्नि संयोग पाप जिमि, कंचन विमल कहावै । श्रीजिनवर. ॥ १ ॥ चन्द्रोज्ज्वल जस तिनको जग में, पंडित जन नित गावैं । जैसे कमल सुगंध दशो दिश, पवन सहज फैलावै । श्रीजिनवर. ॥ २ ॥ तिनहिं मिलन को मुक्ति सुंदरी चित अभिलाषा ल्यावै । कृषि में तृण जिमि सहज ऊपजै त्यो स्वर्गादिक पायै ॥ श्रीजिनवर. ॥ ३ ॥ जनम जरामृत दावानल ये, भाव सलिल”° बुझावै । 'भागचन्द' कहाँ ताई११ वरनै तिनहिं इन्द्र सिर नावै। श्रीजिनवर. ॥ ४ ॥
(२३)
राग - जंगला तुम गुन मनि निधि हौ अरहंत ॥ टेक॥ पार न पावत तुमरो गनपति, चार ज्ञान धरि संत ॥ तुम गुन. ॥१॥ आनकोष सब दोष रहित तुम, अलख अमूर्ति अन्वित ॥ तुम गुन. ॥ २ ॥
१. आपसे २. आपकी ३. बंदना करने वाला ४. परिवार भी ५. विनय करता है ६. कंडे की आग ७. जिस प्रकार ८. खेत में ९. उसी प्रकार १०. पानी से ११. उनको।
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