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(१५)
अवलों नहिं उरआनी ॥ म्हें तो. ॥ १॥ काहे को भव वन में भ्रमते, क्यों होते दुखदानी ॥ म्हें तो. ॥ २ ॥ नाम प्रताप तिरे अजंन से, कीचक से अभिमानी ॥ म्हें तो. ॥३॥ ऐसी साख बहुत सुनियत है, जैन पुराण वखानी ॥ म्हें तो. ॥ ४ ॥ 'भूधर' को सेवा वर दीजें, मैं जाचक तुम दानी ॥ म्हें तो. ॥५॥
(४४)
राग-विहाग तहां लैं चल री। जहां जादौपति प्यारो ॥ टेक॥ नेमि निशाकर' बिन यह चन्दा तन-मन दहत' सकल री ॥ तहो. ॥ १ ॥ किरन किधौं नाविक-शर तति कै, ज्यों पावक' की झलरी । तारे हैं कि अंगारे सजनी, रजनी राक सदल री। तहां. ॥ २ ॥ इह विधि राजुल राजकुमारी, विरह तपी केवल री । 'भूधर' धन्न शिवासुत वादर, बरसायो समजल री ॥ तहां. ॥३॥
(४५)
राग-सोरठ स्वामीजी सांची सरन तुम्हारी ॥ टेक ॥ समरथ शांत सकल गुन पूरे, भयो भरोसो भारी ॥स्वामी. ॥१॥ जनम जरा जग बैरी जीते, टेव भरनं की टारी । हमहूं को अजरामर करियो, भरियो आस हमारी ॥स्वामी. ॥२॥ जनमैं मरै धरै तन फिरि-फिरि सो साहिब संसारी 7 ॥ 'भूधर' पद दालिद क्यों दलि है, जो है आप भिखारी ॥स्वामी. ॥३॥
सवैया (मात्रा ३२) ज्ञान जिहाज'१ बैठि गनधर से, गुनपयोधि२ जिस नाहिं तरे हैं। अमर समूह आनि अवनी३ सौं, घसि-घसि सीस प्रनाम करें हैं । किंधौं ५ भाल कुकरम की रेखा, दूर करन की बुद्धि धरे हैं ।
१.चन्द्रमा २.जलाता है ३.वाण ४.पंक्ति ५.आग की लपटें ६. पूर्णमासी की रात्रि ७.धन्य ८.काले,श्वेत ९.मुझको ही १०.दारिद्र ११.ज्ञानरूपी जहाज १२.गुणों का समुद्र १३.पृथ्वी पर १४.रगड़ रगड़ कर १५. अथवा १६. खोटे कर्म ।
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