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(६३) देख्या मैंने नेमिजी प्यारा ॥ टेक ॥ मूरति ऊपर करौं निछावर तन, धन जीवन' सारा ॥ देख्या. ॥ १ ॥ जाके नख की शोभा आगै कोटि काम छवि डारौ बारा । कोटि संख्य रवि चंद छिपत है, वपु की दुति है अपरंपारा ॥ देख्या. ॥ २ ॥ जिनके वचन सुनै जिन भविजन, तजि गृह मुनिवर को व्रतधारा । जाको जस इन्द्रादिक गावें, पावै सुख नासै दुख भारा ॥ देख्या. ॥ ३ ॥ जाके केवलज्ञान विराजन, लोकालोक प्रकाशन द्वारा । चरन गहे की लाज निवाहो, प्रभु जी 'द्यानत' भगत तुम्हारा ॥ देख्या. ॥ ४॥
(६४) प्रभु मैं किहि विधि थुति करौं तेरी ॥ टेक ॥ गणधर कहत पार नहिं पावै, कहा बुद्धि है मेरी ॥ प्रभु. ॥१॥ शक्र जनम भरि सहस जीभ धरि, तुम जसं होत न पूरा । एक जीभ कैसे गुण गावै, उलू कहै किमि सूरा ॥ प्रभु. ॥ २ ॥ चमर छत्र सिंहासन बरनों, ये गुण तुमतें न्यारे । तुम गुण कहन वचन बल नाहीं, नैन गिनैं किमि तारे ॥ प्रभु. ॥३॥
(६५) भज श्री आदि चरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे ॥ टेक ॥ भगति बिना सुख रच न होई, जो ढूंढै तिहुं जग में कोई ॥ भज. ॥ १ ॥ प्रान-पयान-समय दुख भारी, कंठ विर्षे कफ की अधिकारी । तात मात सुत लोग धनेरा,६ तादिन कौन सहाई१८ तेरा ॥ भज. ॥ २ ॥ तू बसि चरण-चरण तुझमाही, एक मेक है दुविधा नाहीं । तातें जीवन सफल कहावै जनम जरामृत पास न आवै ॥ भज. ॥ ३ ॥ अब ही अवसर फिर जम९ धेरै, छांड़ि लरक° बुधि सद गुरु टेरें । 'द्यानत' और जतन१ कोउ नहिं होय तिहुँ जगमांहि ॥ भज. ॥ ४ ॥
१. यौवन २. न्योछावर कर दूं ३. शरीर ४. यश, कीर्ति ५. किस प्रकार ६. स्तुति ७.इन्द्र ८. हजार ९. यश १०. उल्लू ११. सूर्य १२. वचनों में शक्ति १३. नेत्र १४. भक्ति १५. प्राण निकलते समय १६. बहुत १७. उस दिन १८. सहायक १९. यम, मृत्यु २०. लड़कबुद्धि २१. यत्न ।
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