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संग्रहीत हैं। इनका संकलन स्वयं कवि ने किया है । इनकी रचनाओं में उपदेश - शतक, अक्षर-बावनी एवं आगम - विलास, अध्यात्मनीति एवं भाषा - विज्ञान की दृष्टि से विशेष रूप से अध्ययनीय हैं।
कवि का जन्म वि० सं० १७३३ (सन् १६७६) में आगरा में हुआ था। इनके पिता का नाम श्यामदास था ।
भूधरदास
कवि भूधरदास ने अपने जीवन में तीन रचनाओं का प्रणयन किया— (१) पार्श्वपुराण, (२) जैनशतक एवं (३) पद - संग्रह। उनकी ये तीनों रचनाएँ यद्यपि काव्य - गुणों से परिपूर्ण हैं, फिर भी, हिन्दी जैन साहित्य में उक्त पार्श्वपुराण उत्कृष्ट कोटि का चरित-काव्य माना गया है। इसमें २३ वें तीर्थकर "पार्श्वनाथ " का चरित्र वर्णित है। आचार्य हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने प्रस्तुत रचना को हिन्दी साहित्य का उत्कृष्ट कोटि का चरित - काव्य माना है ।
" जैन - शतक में जैसा उसके नाम से ही स्पष्ट है, इसमें १०७ दोहा, कवित्त, सवैया और छप्पय-छन्दों में नीति सम्बन्धी रचनाएँ समाहित हैं ।
" पद - संग्रह" में ८० पदों का संकलन है। ये सभी पद आध्यात्मिकता से आप्लावित हैं तथा ससार की यथार्थता से मानव का परिचय कराते हैं । इनके पदों के रूपक एक से एक मार्मिक चित्र - चित्रित करने में समर्थ हैं।
कवि भूधरदास आगरा के निवासी थे। इनका जन्म समय अनुमानतः १८वीं सदी का पूर्वार्द्ध माना गया है।
कविबुधजन
कवि बुधजन की काव्य-प्रतिभा अद्भुत थी। इनकी रचनाएँ वि० सं० १८७१ से १८९५ (सन् १८१४-१८३८) तक की उपलब्ध होती हैं, जिससे उनका समय वि० सं०१८३० से लगभग १८९५ तक (सन् १७७३ - १८३८) माना जा सकता है। ये जयपुर के निवासी खण्डेलवाल जैन थे। इनकी १७ रचनाएँ उपलब्ध हो चुकी हैं। इनमें से ( १ ) तत्त्वार्थबोध (वि०सं० १८७१), (२) बुधजन - सतसई (वि० सं० १८८१), (३) पंचास्तिकाय (वि० सं० १८९१), (४) बुधजन - विलास (वि० सं० १८९२) और ( ५ ) योगसार - भाषा ( वि० सं० १८९५) आदि प्रमुख हैं। इनकी भाषा राजस्थानी और हिन्दी है जिनेन्द्र की महत्ता,
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