Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
महादेव जी, मुकुन्द का अर्थ- बलदेवजी, तडाग का अर्थ तालाब' (कृत्रिम), सर का अर्थ - झील (प्राकृतिक ), द्रह का अर्थ- जो क्रीड़ा आदि करने के लिए पानी से भरा जाता है ऐसा हृद (हौद) ।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयणमेराए संखडिं णच्चा संखडिं
पडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥
कठिन शब्दार्थ - परं प्रकर्ष से उत्कृष्ट, अद्धजोयणमेराए अर्द्ध योजन परिमाण
क्षेत्र में, संखडिं जीमन वार (प्रीतिभोज) को, णच्चा
जान कर, गमणाए जाने के
लिए, णो नहीं, अभिसंधारिज्जा- मन में संकल्प करे ।
भावार्थ - साधु या साध्वी अर्द्ध योजन प्रमाण संखडी - जीमनवार प्रीतिभोज आदि को जानकर आहार लाभ के निमित्त से वहाँ जाने का संकल्प न करे ।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु को सरस एवं स्वादिष्ट पदार्थ प्राप्त करने की अभिलाषा से संखडी - जीमनवार या प्रीतिभोज में भिक्षा के लिये नहीं जाना चाहिये । संखडी शब्द का अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है। "संखण्ड्यन्ते - विराध्यन्ते प्राणिनो यत्र सा संखडि: " जहाँ अनेक जीवों के प्राणों का नाश करके भोजन तैयार किया जाता है उसे संखडी कहते हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पाईणं संखडिं णच्चा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं णच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं णच्चा उदीणं गच्छे अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं णच्चा दाहिणं गच्छे अणाढायमाणे ॥
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कठिन शब्दार्थ - पाईणं- पूर्व दिशा में, पडीणं पश्चिम दिशा में, अणाढायमाणेअनादर (उपेक्षा) करता हुआ, दाहिणं दक्षिण दिशा में, उदीणं - उत्तर दिशा में ।
भावार्थ - यदि साधु या साध्वी यह जाने कि पूर्व दिशा में संखडी (जीमनवार) हो रही है तो वह उसके प्रति अनादर (उपेक्षा) भाव रखते हुए पश्चिम दिशा में चला जाय । यदि पश्चिम दिशा में संखडी जाने तो उसके प्रति अनादर (उपेक्षा) भाव रखते हुवे पूर्व दिशा में चला जाय इसी प्रकार दक्षिण दिशा में संखडी जाने तो उसके प्रति अनादर भाव रख कर उत्तर दिशा में चला जाय और उत्तर दिशा में संखडी जाने तो उसके प्रति अनादर भाव रख कर दक्षिण दिशा में चला जाय ।
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