Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक २
२३ .00000000000000000000....................................
भावार्थ - साधु या साध्वी भिक्षार्थ गृहस्थ के घर में प्रवेश करके जाने कि-यहाँ बहुत से लोग इकट्ठे हुए हैं, पितृपिण्ड (पितरों के श्राद्ध में) अथवा इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग, स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तडाग, हृद (द्रह), नदी, सर, सागर, आकर सम्बन्धी महोत्सव में अथवा इसी प्रकार के अन्य महोत्सवों पर बहुत से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण, भिखारीं आदि को एक या अनेक पात्रों से यावत् संचित किये हुए. घृतादि स्निग्ध पदार्थों को परोसते हुए देखकर, तथाविध आहार जो पुरुषान्तरकृत न हुआ हो यावत् सेवन न किया गया हो तो मिलने पर भी साधु उस आहार को अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर उसे ग्रहण न करे। ___ अगर साधु को यह ज्ञात हो जाय कि जिनको भोजन देना था, उन्हें दिया जा चुका है और उस गृहस्थ की पत्नी, भगिनि, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू, धाय, दास-दासी, नौकर-नौकराणी आदि को देखकर कहे कि - हे आयुष्मन् श्रावक ! या हे आयुष्यमति भगिनि! मुझे इन खाद्य पदार्थों में से अन्यतर भोजन देओगी? इस प्रकार कहते हुए कोई अशनादि लाकर देवे अथवा साधु याचना करे या गृहस्थ स्वयं देवे तो साधु उस आहार पानी को प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण कर सकता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि गृहस्थ के घर में विभिन्न उत्सव, महोत्सवों के अवसर पर शाक्यादि भिक्षु श्रमण ब्राह्मण भिखारी आदि भोजन कर रहे हों
और वह .भोजन पुरुषान्तरकृत नहीं हुआ हो तो साधु अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर ग्रहण नहीं करे। यदि अन्य भिक्षु आदि भोजन करके चले गये हों और परिवार के सदस्य आदि भोजन कर रहे हों तो साधु प्रासुक एवं एषणीय आहार की याचना कर सकता है। ___ "पिण्ड णियरेसु" का अर्थ है-पिण्ड निकर:-पितृ पिण्ड अर्थात् मृतक के निमित्त तैयार किया गया भोजन। वहाँ प्रयुक्त महोत्सव भौतिक कामनाओं के लिए किये जाते रहे हैं।
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त स्तूप एवं चैत्य शब्द एकार्थक नहीं है। स्तूप का अर्थ है-मृतक की चिता पर उसकी स्मृति में बनाया गया स्मारक और चैत्य का अर्थ है-यक्ष आदि व्यन्तर देवता का आयतन। इससे स्पष्ट हो जाता है कि चैत्य शब्द का प्रयोग जिन भगवान् या प्रतिमा के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है।
स्कन्द का अर्थ - कार्तिकेय (षडानन-महादेव जी के बड़े पुत्र), रुद्र का अर्थ -
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