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मैं धन्य हूँ कि मुझे ऐसी महान् अध्यात्मिक योगिनी के दर्शन का लाभ उज्जैन जैसे पुण्य क्षेत्र में मिला और इनके आशीर्वाद से मेरी साधना सफल व फलफल रही है। मैं
आपका अत्यंत ऋणी हूं और मेरे इष्ट भगवान् विक्रांत बाबा से यही बार-बार प्रार्थना करता हूँ कि महासतीजी का जीवन मेरे लिए तथा जनता जर्नादन के लिए हमेशा-हमेशा प्रेरणा दायक रहे।
पुनः महासतीजी को साष्टांग वंदना के साथ उनका शिष्य ।
वन्दना भी अभिनन्दन भी
। डॉ० तेजसिंह गौड़
सन १९८३ के माह मई का अंतिम सप्ताह था। उस समय (स्व.) युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. सा. अपने शिष्य समुदाय के साथ रतलाम में विराजमान थे। एक दिन मैं उनके दर्शनार्थ रतलाम पहंचा और वहीं मैंने काश्मीरप्रचारिका अध्यात्मयोग-साधिका परमविदुषी, प्रवचनशिरोमणि, सरलहृदया, दया, क्षमा, करुणा, विनय की साक्षात् प्रतिमूर्ति महासती श्री उमरावकंवरजी म. सा. 'अर्चना' के प्रथम बार दर्शन किये। आपके नाम से तो मैं परिचित था, प्रत्यक्ष दर्शन पाकर मैं अभिभूत हो उठा।
इसके पश्चात तो सम्पर्क का सिलसिला अनवरत बना हुआ है। आप स्वभाव से बहुत ही सहज एवं सरल हैं, विनय गुण तो आप में कट-कूट कर भरा हुअा है और वाणी संयम पर तो आपका पूर्ण अधिकार है। साधना की इस ऊँचाई पर और ज्ञान को इतनी गहराई तक पहुँचने पर भी मैंने आपके मुख से कभी ऐसे शब्द नहीं सुने जिन्हें गर्व की सीमा में रखा जा सके। आप अपने भक्तों की समस्याओं का सहज ही समाधान कर देती हैं और फिर उसका श्रेय अपने गुरु भावंतों को दे देती हैं।
एक समुदायविशेष की अनुयायी होते हुए भी आप किसी प्रकार के कदाग्रहों/पूर्वाग्रहों से ग्रसित नहीं है। गुण/अच्छाई जहाँ से भी प्राप्त हो पाप ग्रहण कर लेती हैं, यही कारण है कि आप में समन्वय का एक और गुण भी विद्यमान है।
आपके साधनामय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस अवसर पर आपके परम पावन चरणों में अपनी कोटि-कोटि वन्दना प्रेषित करते हुए हार्दिक अभिनन्दन करता है और यही कामना करता हूँ कि आपकी कृपा सदैव बनी रहे।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन | ३०
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