Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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राज्य-लोभी पुत्र का दुष्कृत्य
वज्रजंघ और श्रीमती, भोगप्रधान जीवन व्यतीत करने लगे। उनके एक पुत्र हुआ। उधर पुष्करपाल महाराज के अधिनस्थ सामन्त लोग विद्रोही बन गये। उन्हें वशीभूत करने के लिए वज्रजंघ राजा को आमन्त्रण दिया । वह पत्नी-सहित सेना ले कर रवाना हुआ। रास्ते में एक सघन वन था । उसमें दृष्टि विष सर्प रहता था। इसलिए दूसरे मार्ग से हो कर सेना आगे बढ़ी और विद्रोही राजाओं को परास्त कर के पुनः वश में किये। पुष्करपाल नरेश ने वज्रजंघ राजा का (जो पुष्करपाल का बहमोई भी लगता था) बड़ा भारी सत्कार किया। वज्रजंघ, श्रीमती-सहित अपने नगर की ओर रवाना हुआ। उसे मालूम हुआ कि शरकट वन में श्री सागरसेन और मनिसेन नाम के दो मुनिवरों को केवल. ज्ञान उत्पन्न हुआ है । वहाँ देवों के आवागमन के प्रभाव से दृष्टिविष सर्प निविष हो गया है। अब इस सीधे मार्ग से हो कर जाने में कोई बाधा नहीं है । वज्रजंघ यह जान कर प्रसन्न हुआ कि केवलज्ञानी मुनिराज अभी इसी वन में हैं। वह उसी मार्ग से चला और मुनिवरों के दर्शन वन्दन और उपदेश श्रवण कर निर्वेद भाव को प्राप्त हुआ। उसने निश्चय किया कि राजधानी में पहुँच कर राज्य का भार, पुत्र को सौंप कर प्रवजित हो जाना और पिता के मार्ग पर चल कर मानव-भव सफल करना । वह लोहार्गलपुर पहुँचा। उधर वज्रजंघ का युवक पुत्र, राज्याधिकार प्राप्त करने के लिए बहुत ही अधीर हो रहा था। उसने लालच दे कर अमात्यों को वश में कर लिया था। इधर राजा और रानी के मन में प्रत्रजित होने की तीव्र भावना थी। वे दूसरे ही दिन पुत्र का राज्याभिषेक कर दीक्षित होना चाहते थे । रात को राजा-रानी ने शयन किया । उधर मन्त्री-मण्डल का षड्यन्त्र चला। उन्होंने उस आवास में विषैला धुआँ फैला दिया। वह धुआँ श्वास के साथ शरीर में प्रवेश कर गया और भावविरक्त दम्पत्ति का प्राणान्त कर दिया। राजा-रानी उत्तरकुरू क्षेत्र में युगलरूप से उत्पन्न हुए। वहाँ से मर कर वे सौधर्म स्वर्ग में देव हुए।
जीवानन्द वैद्य और उसके साथी
दिव्यभोगों को भोग कर, आयुष्य पूर्ण होने पर वज्रजंघ का जीव, जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र के क्षितिप्रतिष्ठत नगर में, सुविधि नाम के वैद्य के यहाँ " जीवानन्द" नाम के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । उसी समय के लगभग उस नगर में अन्य चार बच्चे उत्पन्न हुए। यथा -
१ ईशानचन्द्र नरेश को कनकावती रानी की कुक्षि से 'महीधर' नामक पुत्र,
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