Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
के पुनः शेषा इत्याह ।
इस सूत्रमें कहे गये वे शेषजीव फिर कौन हैं ? जिनके कि गुणप्रत्यय अवधि होती है। इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं।
शेषा मनुष्यतिर्यञ्चो वक्ष्यमाणाः प्रपंचतः ।
ते यतः प्रतिपत्तव्या गतिनामाभिधाश्रयाः ॥७॥ पूर्व सूत्रों कण्ठोक्त कहे गये देव और नारकियोंसे अवशेष बच रहे मनुष्य और तिर्यच यहाँ शेषपदसे लिये गये हैं। अग्रिम अध्यायोंमें विस्तारके साथ मनुष्य और तिर्यचोंकी परिभाषा कर दी जायगी, जिस कारण कि ये मनुष्य और तिर्यच अपने योग्य मनुष्यगति और तिर्यग्गतिनामक नामकर्मके उदयसे भिन्न भिन संज्ञाओंका आश्रय ले रहे है । गतिनामक प्रतिके उत्तर मेद अनेक हैं। अतः उस उस गतिकर्मके अनुसार जीव मनुष्य और तिर्यच समझ लेने चाहिये । । स्यात्तेषामवधिर्बाह्यगुणहेतुरितीरणात् ।
भवहेतुर्न सोस्तीति सामर्थ्यादवधार्यते ॥ ८॥
उन कतिपय मनुष्य तिर्यंचोंके हो रहे अवधिज्ञानके बहिरंग कारण संयम बादि गुण हैं। इस प्रकार नियमकर कथन कर देनेसे उनके वह भवप्रत्यय अवधि नहीं है, यह मन्तव्य विना कहे ही निरूपित वचनकी सामर्थ्यसे अवधारण कर लिया जाता है। क्योंकि "क्षयोपशमनिमित्त एव शेषाणाम् " इस प्रकार पहिला एवकार अवधारण कर देनेसे शेषोंके अवधिज्ञानमें भवका बहिरंगकरणपना निषिद्ध हो जाता है।
तेषामेवेति निर्णीतेदेवनारकविच्छिदा ।
क्षयोपशमहेतुः सनित्युक्ते नाविशेषतः ॥९॥
" शेषाणामेव क्षयोपशमनिमित्तः " उन शेषोंके ही गुणप्रत्यय अवधि होती है। इस प्रकार एवकार द्वारा उत्तरवर्ती निर्णय (नियम ) कर देनेसे देव और नारक जीवोंका व्यवच्छेद कर दिया जाता है। अवविज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमस्वरूप अंतरंगकारणको हेतु मान कर अवधिज्ञान वर्त रहा है। इस प्रकार कहनेपर तो सामान्यरूपसे यानी विशेषताओंसे रहित होकर सभी मनुष्य तिर्यचोंके सम्भावित हो रहे अवधिज्ञानके सद्भावका निषेध सिद्ध हो जाता है । हां, जिन जीवोंके अंत. रंगकारण क्षयोपशम होगा, उन्हीं के अवधिज्ञानका सद्भाव पाया जायगा, बन्योंके नहीं।
क्षयोपशमनिमित्त एव शेषाणामित्यवधारणाद्भवप्रत्ययत्वव्युदासा । शेषाणामेव क्षयोपशमानिमित्त इति देवनारकाणां नियमाचतो नोभयथाप्यवधारणे दोषोऽस्ति ।