Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
या गया, या कलकत्तेमें सिकरनेवाली हुंडीकी कलकत्ता बेचोगे ? यों कहा जाता है। तद्वत् यहां भी उपचार है।
किमर्थ मुख्यशद्वानभिधानमित्याह ।
यहां किसीका प्रश्न है कि शिष्यों के हितैषी और अविप्रलम्भज्ञान करानेवाले श्री उमाखामी महाराजने उपचरितशद्वोंका प्रयोग क्यों किया ! मुख्यशद्वोंका उच्चारण क्यों नहीं किया ! सूत्रकार महाराजजीको चारित्रमोहनीयके क्षय, उपशम और क्षयोपशमस्वरूप निमित्तोंसे अवधि होती है, ऐसा स्पष्ट निरूपण कर देना चाहिये था, इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं । सो सुनो, और ध्यान लगाकर समझो।
क्षायोपशम इत्यन्तरंगो हेतुर्निगद्यते । यदि वेति प्रतीत्यर्थं मुख्यशद्वाप्रकीर्तनम् ॥ ५॥ तेनेह प्राच्यविज्ञाने वक्ष्यमाणे च भेदिनि ।
क्षयोपशम हेतुत्वात्सूत्रितं संप्रतीयते ॥ ६॥
अथवा सूत्रकार महाराजको यदि अन्तरंग और बहिरंगकारण दोनोंका निरूपण करना अमीष्ट होय तो इसलिये भी “ क्षयोपशम " ऐसा गम्भीरशद कह दिया है । इस सूत्र करके अवधिज्ञानका अन्तरंगकारण ज्ञानावरणका क्षयोपशम है, यह भी कह दिया जाता है । इस तत्वकी प्रतिपत्ति करानेके लिये ही मुख्यशद्वका स्पष्टरूपसे उच्चारण नहीं किया है । तिस कारणसे यहां शेष जीवोंके छह भेदवाळे अधिज्ञानमें और पूर्व में कहे गये देवनारकियोंके भव प्रत्यय अवधि. ज्ञानमें तथा उससे भी पूर्व में कहे गये भेदयुक्त मतिज्ञान, श्रुतज्ञानोंमें और भविष्यमें कहे जानेवाले भेदसहित मनःपर्यय ज्ञानमें ज्ञानावरणोंके क्षयोपशमको अंतरंग हेतु मानकर जन्यपना है । इस प्रकार सूत्रद्वारा सूचन कर दिया गया, भले प्रकार निर्णीत कर दिया जाता है। उदात्त महामना सूत्रकार गम्भीर शब्दोंका ही उच्चारण किया करते हैं, तभी शिष्योंको व्युत्पत्ति बढती है । जहां उपचार शब्दोंके बोलनेका नियम है, वहां वैसे ही शब्दोंका उच्चारण करना ठीक समझा जाता है । अपनी माताको जन्मसे ही भाभी शब्दद्वारा पुकारनेवाला बेटा यदि कदाचित् मांको अम्मा कह दे तो अशोभन और थोडा झूठ जचता है । " अनं वै प्राणः " कहना ठीक है । "अनकारणं प्राणाः" इस प्रकार स्पष्ठ कहना पण्डिताईका कार्य नहीं हैं । शब्दशक्तिकी हानि (तोहीन) करनी है। पांचगज कपडा है, यह कहना ठीक है । किन्तु लोहे के गजसे पांच वार नापकर परिमित कर दिया गया कपडा है, यह कहना तुच्छता है । मेरठसे गाडी आ जानेपर मेरठ आगया कहना या बंबईमें सिकरनेवाली इंडीको बेचनेके लिए बम्बईका बेचना कहना ही प्रशस्त है। अत्यन्त पूज्य और