Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
का पुनरत्र क्षया कथोपक्षमा कश्च क्षयोपशम इत्याह ।
इस प्रकरणमें फिर क्षय क्या पदार्थ है ! और उपशम क्या है ! तथा दोनोंसे मिला हुआ क्षयोपशम भला क्या स्वभाव पडता है ! इस प्रकार शिष्यकी आकांक्षा होनेपर आचार्य महाराज वार्षिक द्वारा समाधान कहते हैं।
क्षयहेतुरित्याख्यातः क्षयः क्षायिकसंयमः। संयतस्य गुणः पूर्व समभ्यर्हितविग्रहः ॥ २ ॥
पहिले प्रश्नका उत्तर यों है कि प्रतिपक्षी कोका क्षय जिस संयमका हेतु है, वह चारित्रमोहनयिकर्मके क्षयसे उत्पन्न होनेवाला क्षायिकसंयम यहां क्षय शब्दसे कहा गया है. । व्रतोंका धारण, समितियोंका पालन, कषायोंका निग्रह, मनवचनकायकी उद्दण्ड प्रवृत्तियोंका त्याग, इन्द्रियोंका जय ऐसे संयमको धारनेवाले साधुओंका यह क्षायिक संयमगुण है । गुणको कारण मानकर किसी किसी मुनिके अवधिज्ञान हो जाता है । द्वन्द्व समास किये जा चुके क्षयोपशम शद्वमें अच्छा चारों ओरसे पूजित शरीरवाला और अल्पस्वर होनेके कारण क्षयपद पहिले प्रयुक्त किया गया है । क्षयको निमित्त पाकर आठमेंसे बारहवें गुणस्थानतक अवधिज्ञान होना सम्भवता है।
तथा चारित्रमोहस्योपशमादुद्भवन्नयम् । कथ्येतोपशमो हेतोरुपचारस्त्वयं फले ॥३॥
तथा दूसरे प्रश्नका उत्तर यह है कि चारित्रमोहिनीयकर्मके उपशमसे उत्पन हो रहा, यह माव उपशम कहा जाता है । जो कि उपशम चारित्र किन्हीं संयमी पुरुषोंका गुण है। इस उपशम भावको निमित्त मानकर आठवें गुणस्थानसे ग्यारहवें तक किन्हीं मुनियोंके अवधिज्ञान हो जाता है। यहां प्रकरणमें उपशम और क्षय शब्दोंसे तज्जन्यभाव पकडे गये हैं । अतः यह हेतुका फलमें उपचार है। अर्थात्-कारणोंमें क्षयपना या उपशमपना है, किंतु क्षय और उपशमसे जन्य हुये क्षायिक संयम और औपशमिक संयमस्वरूप साधुगुणोंको क्षय और उपशम कह दिया गया है।
क्षयोपशमतो जातः क्षयोपशम उच्यते । संयमासंयमोपीति वाक्यभेदाद्विविच्यते ॥ ४ ॥
प्रतिपक्षी कर्मीकी सर्वघाति प्रकृतियोंका क्षय और आगे उदय आनेवाली सर्वघातिप्रकृतियोंका वर्तमानमें उपशम तथा देशवाति प्रकृतियों का उदय इस प्रकारके क्षयोपशमसे उत्पन्न हुआ, भात योपशम कहा जाता है। यहां भी कारणका कार्यमें उपचार है । छह सातवें गुणस्थानवर्ती