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विषयानुक्रमणिका :: 51
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शुक्लध्यान के भेद प्रथम पृथक्त्व वितर्क वीचार का स्वरूप वितर्क विशेषण का कारण वीचार का अर्थ द्वितीय एकत्व वितर्क ध्यान का स्वरूप एकत्व वितर्क वीचार रहित है । सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाती ध्यान का स्वरूप तीसरे शुक्लध्यान का समय व प्रयोजन चौथा व्युपरतक्रिया-निवृत्ति शुक्लध्यान का स्वरूप एवं प्रयोजन निर्जरा का वृद्धिक्रम निर्ग्रन्थ साधुओं के पाँच भेद साधुओं में भेदों के कारण निर्जरा तत्त्व की श्रद्धा का
आठवाँ अधिकार मंगलाचरण और अधिकार-प्रतिज्ञा मोक्ष का साक्षात्कार और लक्षण कर्म-बन्धन कब छूटता है संवरपूर्वक निर्जरा की सिद्धि मोक्ष में गुणों का अभाव-सद्भाव अनादि कर्म के नष्ट होने में युक्ति कर्मनाश से संसार का नाश कैसे? आत्मबन्धन सिद्धि का दृष्टान्त मुक्त होने पर भी बन्ध होने की आशंका का परिहार बन्ध स्वाभाविक धर्म नहीं है मुक्त जीव के पुनः संसार में न आने का कारण मुक्तजीवन का पतन (अधोगमन) नहीं होता अनन्त आत्माओं के थोड़े से क्षेत्र में रहने की युक्ति अनन्त आत्माओं के समाने का दृष्टान्त अमूर्तिक आत्मा के निराकार होने से सद्भाव-सिद्धि आत्मा की शरीराकृति शरीराकार होने के दृष्टान्त दृष्टान्त का उपसंहार मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करते हैं कर्म-क्षय का क्रम
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