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आठवाँ अधिकार :: 331
निर्दोष मोक्षसुख
कर्मक्लेश-विमोक्षाच्च मोक्षे सुखमनुत्तमम्॥49॥ अर्थ-कर्मजन्य क्लेशों से छुटकारा हो जाने के कारण मोक्षावस्था में जो सुख होता है वह अनुपम सुख है। यह सुख का चौथा भेद है। पहले तीनों सुख आभिमानिक (काल्पनिक) हैं, नश्वर हैं, पराधीन हैं, ज्ञानादि सुख-साधनों के घातक हैं, वास्तविक रूप में वे दुःख ही हैं। मोक्षावस्था का सुख आभिमानिक नहीं है, अविनश्वर है, स्वाधीन है, ज्ञानादि सुख-साधनों का अविनाभावी है और पोषक है, इसलिए यही परम और सच्चा सुख है।
अन्य मत में निर्वाण का स्वरूप एवं उसका निराकरण
सुषुप्तावस्थया' तुल्यां केचिदिच्छन्ति निर्वृतिम्। तदयुक्तं क्रियावत्वात् सुखातिशयतस्तथा ॥ 50॥ श्रम-क्लेम-मद-व्याधि-मदनेभ्यश्च सम्भवात्।
मोहोत्पत्तिर्विपाकाच्च दर्शनजस्य कर्मणः॥ 51॥ अर्थ-कुछ लोग सुषुप्ति के समान निर्वाणावस्था को मानते हैं, परन्तु ऐसा मानना असंगत है, क्योंकि सषप्तावस्था जिस प्रकार ज्ञानक्रिया को रोकनेवाली मानी जाती है, वैसी निर्वाण अवस्था ज्ञानक्रिया को रोकनेवाली नहीं होती। जो आज पर्यन्त कभी ज्ञान नहीं हुआ वह ज्ञान मुक्त जीव को रहता है, इसलिए ज्ञानक्रिया प्रवर्तती है। सुषुप्ति का अर्थ गाढ़निद्रा है। उसमें ज्ञान साधकभूत मन का और इन्द्रियों का, विषयों से विराम हो जाना माना है, इसलिए उसके समय क्रिया का निरोध है। जहाँ ज्ञान, दर्शन का निरोध होगा वहाँ सुख का संकल्प भी नहीं हो सकता है। सुख का संकल्प ज्ञान का अविनाभावी है, इसलिए सुषुप्ति के समय जब कि ज्ञान का अभाव मान लिया है तो जागृत अवस्था के बराबर भी वहाँ सुख नहीं कहा जा सकता है। अतः साधारण सुख की जो दशा ह्रास करती है वह सुख की अत्यन्त वृद्धि करनेवाली निर्वाण अवस्था के तुल्य कैसे हो सकती है? मोक्षावस्था में श्रम नहीं, मद नहीं, क्लेद नहीं, आधि-व्याधि नहीं, मदनोद्रेक नहीं, मोह नहीं, और दर्शनावरण कर्म का उदय नहीं, पर सुषुप्ति में ये सभी बातें रहती हैं।
मोक्षसुख की निरुपमता
लोके तत्सदृशो ह्यर्थः कृत्स्नेऽप्यन्यो न विद्यते।
उपमीयते तद्येन तस्मान्निरुपमं स्मृतम्॥ 52॥ अर्थ-सम्पूर्ण जग में मोक्षसुख के समान दूसरा कोई पदार्थ नहीं है जिससे कि इसकी तुलना कर सकें, इसलिए मोक्षसुख को ऋषि, महर्षियों ने निरुपम माना है।
1. दूसरे मतों में सुषुप्ति समय ज्ञान का अभाव माना है। जैन सिद्धान्त में दर्शनावरण का उदय होना माना गया है। दर्शनोपयोग के
बिना नवीन ज्ञान का होना असम्भव है, इसलिए सुषुप्तावस्था में ज्ञान का अभाव मानना अनुचित नहीं है।
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