________________
नौवाँ अधिकार ग्रन्थ का सारांश
सात तत्त्वों को जानने के उपाय
प्रमाण-नय-निक्षेप-निर्देशादि-सदादिभिः।
सप्ततत्त्वमिति ज्ञात्वा मोक्षमार्ग समाश्रयेत्॥1॥ अर्थ-सात तत्त्वों का स्वरूप क्रम से जो कहा है उसे प्रमाण के द्वारा, नय के द्वारा, निर्देशादि तथा सत् आदि अनुयोगों के द्वारा जान कर मोक्षमार्ग में प्रवेश करना चाहिए। प्रमाणादिकों का स्वरूप प्रथम प्रकरण में कह चुके हैं, मोक्षमार्ग का स्वरूप भी कहा जा चुका है। मोक्षमार्ग का क्रम
निश्चय-व्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गो द्विधा स्थितः।
तत्राद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम्॥2॥ अर्थ-मोक्षमार्ग के दो भेद हैं-निश्चय मोक्षमार्ग और व्यवहार मोक्षमार्ग। अन्तिम दशा में प्राप्त होनेवाले सम्पूर्ण प्रयत्न की फलस्वरूप अवस्था को निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं। व्यवहार मोक्षमार्ग इस निश्चय मोक्षमार्ग का साधक है। निश्चय मोक्षमार्ग का स्वरूप
श्रद्धानाधिगमोपेक्षाः शुद्धस्य स्वात्मनो हि याः।
सम्यक्त्व-ज्ञान-वृत्तात्मा मोक्षमार्गः स निश्चयः॥3॥ अर्थ-शुद्ध निजात्मा का अभेदरूप से श्रद्धान करना, उसे अभेदरूप से ही जानना और अभेदरूप से ही उसमें लीन होना-इस प्रकार जो सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रय की प्रवृत्ति होती है वह निश्चय मोक्षमार्ग है। व्यवहार मोक्षमार्ग का स्वरूप
श्रद्धानाधिगमोपेक्षाः याः पुनः स्युः परात्मनाम्। सम्यक्त्व-ज्ञान-वृत्तात्मा स मार्गो व्यवहारतः॥4॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org