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भवनवासियों के दश भेद
में
अर्थ – प्रत्येक भेद के साथ 'कुमार' शब्द जोड़ने की यहाँ रूढ़ि है । 1. नागकुमार, 2. असुरकुमार, 3. सुपर्णकुमार, 4. अग्निकुमार, 5. दिक्कुमार, 6. वातकुमार, 7. स्तनितकुमार, 8. उदधिकुमार, 9. द्वीपकुमार और 10. विद्युत्कुमार, ये भवनवासियों के दश भेद हैं।
नागासुर' सुपर्णाग्नि- दिग्वात- स्तनितोदधिः । द्वीप - विद्युत्कुमारख्या दशधा भावनाः स्मृताः ॥ 215 ॥
व्यन्तरों के आठ भेद
किन्नराः किंपुरुषाश्च गन्धर्वाश्च महोरगाः ।
यक्ष - राक्षस-भूताश्च पिशाचा व्यन्तराः स्मृताः ॥ 216 ॥
अर्थ- 1. किन्नर, 2. किंपुरुष, 3. महोरग, 4. गन्धर्व, 5. यक्ष, 6. राक्षस, 7. भूत, 8. पिशाच, ये व्यन्तरों के आठ उत्तर भेदों के नाम हैं।
द्वितीय अधिकार :: 97
ज्योतिष्कों के पाँच भेद
सूर्या - चन्द्रमसौ चैव ग्रह-नक्षत्र - तारकाः ।
ज्योतिष्काः पञ्चधा ज्ञेया ते चलाचलभेदतः ॥ 217 ॥
अर्थ- सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे-ये पाँच भेद ज्योतिष्क देवों में होते हैं। इन ज्योतिष्कों से चल हैं और बहुत से अचल हैं।
बहुत
वैमानिकों के दो भेद
कल्पोपपन्नास्तथा कल्पातीता वैमानिका द्विधा ।
अर्थ- स्वर्गवासी देवों का वैमानिक नाम है । इनमें से सोलहवें स्वर्ग तक के देवों को कल्पोत्पन्न या कल्पोपपन्न कहते हैं। ऊपरवालों को कल्पातीत कहते हैं । इन्द्र, सामानिक इत्यादि अथवा राजा प्रजा इत्यादि कल्पना सोलहवें स्वर्ग तक है; ऊपर नहीं है । ऊपर के सभी देव अपने-अपने को इन्द्र या स्वामी मानते हैं, इसीलिए उन्हें अहमिन्द्र भी कहते हैं । यह राजा प्रजादि की कल्पना रहने से सोलह स्वर्गविमानों को कल्प कहना सार्थक है।
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ये दो भेद तो हैं ही, परन्तु सोलह स्वर्गपर्यन्त राजा - प्रजा के बारह इन्द्र माने गये हैं। उनका एकएक परिकर जुदा-जुदा गिनने से बारह भेद भी हो जाते हैं । भवनवासी तथा व्यन्तरों में भी जो दश तथा आठ भेद किये हैं वे भी दश-आठ इन्द्र, अपने परिकर के स्वामी अलग-अलग होने से किये हैं, इसीलिए वैमानिकों के भेद सूत्रकार 2 ने बारह बताये हैं ।
1. पहला यह भाग नियमानुसार नहीं दिखता क्योंकि तीसरे दूसरे चरणों में समास नहीं होता। इसलिए या तो इसे श्लोकसम गद्य मानना चाहिए नहीं तो - 'नागोऽसुरः सुपर्णोग्निर्दिग्वातः स्तनितोदधी।' ऐसा पाठ मान लेना ठीक है।
2. दशाष्टपंचद्वादशविकल्पः कल्पोपन्नपर्यन्ताः ॥ तत्त्वा.सू., 4/3, 'कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च' तत्र्त्वा.सू. 4/17 ऐसे दो भेद भी सूत्रकार ने ही किये हैं ।
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