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136 :: तत्त्वार्थसार
जो प्रतीति उत्पन्न होती है उसे झूठा मानने में कोई प्रमाण नहीं है। रही यह बात कि वह क्या चीज है सो विचार करें कि दृष्टि का प्रतिबन्ध करना - यह एक बड़ा बाह्य इन्द्रिय का आवरण है । बाह्य इन्द्रिय का विषय जिस प्रकार पुद्गलमय ही हो सकता है उसी प्रकार बाह्येन्द्रिय के आवरण करनेवाले पदार्थ को भी पौद्गलिक पर्याय ही कहना ठीक है । जगत् में मूर्तिक व अमूर्त ऐसे दो ही पदार्थों के भेद हैं। मूर्तिक पदार्थ की हम एक ही जाति मानते हैं जिसे पुद्गल कहते हैं । बन्धन की विचित्रता से जबकि अनेकों तरह के पर्याय एक ही प्रकार के मूर्तिक पदार्थ से होना सम्भव है तो मूर्तिक पदार्थ के वास्तविक उत्तर भेद मानने की क्या आवश्यकता है ? इसलिए हम तम को पुद्गल पर्याय ही मानते हैं ।
छाया के भेद व लक्षण
प्रकाशावरणं यत् स्यान् निमित्तं वपुरादिकम् । छायेति सा परिज्ञेया द्विविधा सा च जायते ॥ 69 ॥ तत्रैका खलु वर्णादि - विकार - परिणामिनी । स्यात्प्रतिबिम्ब मात्रान्या जिनानामिति शासनम् ॥ 70 ॥
अर्थ - शरीरादि के निमित्त से जो प्रकाश का निरोध हो जाता है उसे छाया कहते हैं । उसके जिन शासन में दो भेद माने गये हैं। एक वह छाया कि जिसमें रूप तथा आकृति ज्यों-की-त्यों उतर जाती है। इसका उदाहरण दर्पण का प्रतिबिम्ब (पाजिटिव) है । दूसरी वह छाया होती है कि जिसमें रूपादि का दृश्य नहीं उतरता, केवल प्रकाश रुकने से उतनी आकृति जुदी दिख पड़ती है। जैसे कि धूप में चलने में एक प्रकार का धूप का आवरण उत्पन्न होता जाता है। उसको भी प्रतिबिम्ब (नेगेटिव) ही कहते हैं । आतप का व उद्योत का लक्षण
आतपोऽपि प्रकाशः स्यादुष्णश्चादित्य-कारणः । उद्योतश्चन्द्र - रत्नादि-प्रकाशः परिकीर्तितः ॥ 71 ॥
अर्थ- सूर्य के कारण जो उष्ण प्रकाश होता है वह आतप है तथा चन्द्रमा और रत्न आदि का जो प्रकाश है उसे उद्योत कहा जाता है।
भेद के भेद
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उत्करश्चूर्णिका चूर्णः खण्डोऽणुचटनं तथा । प्रतरश्चेति षड्भेदा भेदस्योक्ता महर्षिभिः ॥ 72 ॥
अर्थ - भेद होना - यह पुद्गल में ही सम्भव है। मिले हुए एक स्कन्ध के निमित्तवशात् टुकड़े होना - यह भेद का लक्षण है। भेद के छह प्रकार देखने में आते हैं- 1. उत्कर, 2. चूर्णिका, 3. चूर्ण, 4. खंड, 5. अनुचटन, 6. प्रतर । आरी से लकड़ी को चीरने पर जो टुकड़ा हुआ हो वह उत्कर कहलाता है। मूँग आदि द्विदल के जो टुकड़े किये जाते हैं वह चूर्णिका है, हिन्दी भाषा में इसको चुनी भी कहते हैं। गेहूँ के पीसने पर जो टुकड़े होते हैं उसे चूर्ण या चून कहते हैं । घट फूटने पर जो कपाल या उससे भी छोटे टुकड़े होते हैं उन्हें खंड कहते हैं । तप्त लोहे पर घन मारने से जो फुलिंगा निकलते हैं वे अनुचटन
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