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260 :: तत्त्वार्थसार
___इस प्रकार मोहकर्म के 3 + 16 + 9 मिलने पर कुलभेद 28 होते हैं। इनके नाम थोड़े-थोड़े अन्तर से और भी हैं। जैसे, सम्यदर्शन का नाम सम्यक्त्व; अप्रत्याख्यानावरण तथा अप्रत्याख्यानारोधी अथवा अप्रत्याख्यानावरणीय; नोकषाय अथवा नोकषायवेदनीय, कषाय अथवा कषायवेदनीय। दूसरे कर्मों में भी यह बात दिख पडती है कि एक-एक कर्म के कई-कई नाम हैं।
आयु कर्म के चार भेद
श्वाभ्र-तिर्यग्-नृ-देवायुर्भेदादायुश्चतुर्विधम्॥30॥ अर्थ-नरकायु, तिर्यगायु, मनुष्यायु और देवायु ये चार उत्तर भेद आयु कर्म के हैं। नाम कर्म के उत्तर तिरानबे भेद
चतस्त्रो गतयः पञ्च जातयः काय-पञ्चकम्। अंगोपांग-त्रयं चैव निर्माण-प्रकृतिस्तथा॥31॥ पञ्चधा बन्धनं चैव संघातोऽपि च पञ्चधा। समादिचतुरस्त्रं तु न्यग्रोधं स्वाति-कुब्जकम्॥32॥ वामनं हुण्डसंज्ञं च संस्थानमपि षड्विधम्। स्याद्वज्रर्षभनाराचं वज्रनाराचमेव च ॥33॥ नाराचमर्धनाराचं कीलकं च ततः परम्। तथा संहननं षष्ठमसम्प्राप्ता-सृपाटिका॥34॥ अष्टधा स्पर्शनामापि कर्कशं मृदु लघ्वपि। गुरुः स्निग्धं तथा रूक्षं शीतमुष्णं तथैव च ॥35॥ मधुरोऽम्लः कटुस्तिक्तः कषायः पञ्चधा रसः। वर्णाः शुक्लादयः पञ्च द्वौ गन्धौ सुरभी-तरौ॥ 36॥ श्वभ्रादि गतिभेदात् स्या-दानुपूर्वी-चतुष्टयम्। उपघातः परघात:-तथाऽगुरुलघु-र्भवेत् ॥ 37॥ उच्छास आतपोद्योतौ शस्ता-शस्ते नभो-गती। प्रत्येकं त्रस-पर्याप्त-बादराणि शुभं स्थिरम्॥38॥ सुस्वरं सुभगादेयं यशः कीर्तिः सहेतरैः।
तथा तीर्थकरत्वं च नाम प्रकृतयः स्मृताः ॥ 39॥ अर्थ-गति चार हैं : 1. नरकगति, 2. तिर्यंचगति, 3. मनुष्यगति, 4. देवगति। जाति पाँच हैं : 5. एकेन्द्रिय जाति, 6. द्वीन्द्रिय जाति, 7. त्रीन्द्रिय जाति, 8. चतुरिन्द्रिय जाति, 9. पंचेन्द्रिय जाति। शरीर पाँच हैं : 10. औदारिक शरीर। 11. वैक्रियिक शरीर, 12. आहारक शरीर, 13. तैजस शरीर, 14. कार्मण शरीर। अंगोपांग तीन हैं : 15. औदारिक शरीरांगोपांग, 16. वैक्रियिक शरीरांगोपांग, 17. आहारक शरीरांगोपांग।
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