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202 :: तत्त्वार्थसार
के रहने पर भी उक्त व्रत का पूर्ण भंग नहीं हो पाता और प्रथम तीन दोषों का काल भी थोड़ा-सा रहता है, इसलिए इन्हें अनाचार न कहकर अतिचार ही कह सकते हैं।
स्मरण ठीक-ठीक न रखने पर भी व्रती मनुष्य अपने उक्त व्रत को छोड़ नहीं देता, किन्तु डगमगाता हुआ और से और स्मरण कर लेता है, इसीलिए स्मृत्यन्तराधान नाम के दोष को भी अतिचार ही कहते हैं । तिर्यग्व्यतिक्रम गुफादि टेड़ी - मेड़ी जगहों में घुसने से अधिक सम्भव है, परन्तु सीधा इधर-उधर चलने पर भी यदि चलते-चलते भूल जाएँ और मर्यादा से आगे चले जाएँ तो भी तिर्यग्व्यतिक्रम जाता है। दिग्व्रत में अतिचार प्रमाद, मोह और व्यासंग-संयोग से होते हैं। प्रमाद एवं मोह की प्रवृत्ति से सब परिचित हैं। व्यासंग-संयोग का अर्थ है - जैसे किसी के पाकिस्तान जाने का त्याग है चीन जाने का नहीं, लेकिन जिस वाहन से चीन जाना है वह पाकिस्तान होकर जाता है, अथवा देशव्रती युद्ध करता हुआ पाकिस्तान जाता है या यात्रा का प्रसंग आता है तब व्यासंग से अतिचार कहलाता है ।
देशविरतव्रत के पाँच अतिचार
अस्मिन्नानयनं देशे, शब्द रूपानुपातनम् ।
प्रेष्यप्रयोजनं क्षेप: पुद्गलानां च पञ्च ते ॥ 92 ॥
अर्थ- देशावकाशिक या देशविरतव्रत के चारों तरफ से गमन का क्षेत्र आकुंचित करके मर्यादित स्थान में बैठे हुए व्रती को यदि बाहर की चीजों से काम पड़े तो भी वह बाहर से उन चीजों को न मँगावे और न बाहर से दूसरा ही किसी प्रकार का सम्बन्ध रखे। तभी व्रत निर्मल रह सकता है, क्योंकि बाहर की चीजों से पूर्ण ममत्व छूटने के लिए ही दिग्विरत और देशविरत व्रत धारण किये जाते हैं ।
देश मर्यादा कर चुकने पर स्वयं उस बाहरी देश में जाने से व्रतभंग होगा ऐसा समझकर यदि अपना प्रयोजन स्वयं बाहर न जाकर भी दूसरे किसी प्रकार से सिद्ध कर ले तो भी शील में दोष लगता ही है, क्योंकि, ऐसा करने से विषयों से पराङ्मुखता पूर्ण नहीं रह सकती है। जिन दूसरे प्रकारों से प्रयोजन साधनेवाले को दोष लगता है वे पाँच हैं : (1) किसी दूसरे मनुष्य को भेजकर चीज मँगा लेना, सो आनयन' है। (2) काम करनेवाले सेवक के सामने कुछ कहना तो नहीं, परन्तु खाँस, मठार देना सो शब्दानुपात' है। (3) अपना शरीर या हाथ, पाँव, मुख आदि दिखा देना सो रूपानुपात है। (4) सेवक आदि को वस्तु देने आदि के लिए भेजना सो प्रेष्यप्रयोग है । (5) सेवकों को समझाने की इच्छा से माटी का डेला, पत्थर का टुकड़ा फेकना सो पुद्गलक्षेप है। ऐसे ये पाँच अतिचार देशविरतव्रत के
1. अन्यमानयेत्य ज्ञापनमानयनं । - रा. वा. 7/31
2. अभ्युत्कासिकादिकरणं शब्दानुपातः । - रा. वा. 7/31
3. स्वविग्रहप्ररूपणं रूपानुपातः । - रा. वा. 7/31
4. एवं कुर्विति विनियोगः प्रेष्यप्रयोगः । रा. वा. 7/31
5. लोष्ठादनिपातः पुद्गलक्षेपः । स्वयमनाक्रामन्नन्येनाक्रमयतीत्यतिक्रमः । यदि स्वयमतिक्रमेत व्रतलोप एवास्य स्यात् । - रा. वा. 7/31
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