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तृतीय अधिकार :: 133
होता, इसीलिए इनका रहना पुद्गल द्रव्य का लक्षण है। बीसों भेद यद्यपि स्कन्ध में मिलते हैं, परन्तु एकदम नहीं मिलते। रस के पाँच भेद, गन्ध के दो, वर्ण के पाँच-ये परस्पर में विरोधी पर्याय कालक्रमवर्ती हैं, इसलिए एक समय में उक्त तीनों गुणों के कोई तीन पर्याय ही रह सकते हैं, परन्तु कालक्रम से ये सभी भेद रहते हैं। ये सब पर्याय कालक्रमवर्ती हैं, इसलिए काल के भेद से उक्त सभी पर्यायों का एकएक पदार्थ में रहना हो सकता है। स्पर्श के जो आठ भेद लिखे गये हैं उनके चार जोड़े किये गये हैं। जैसे कि शीत-उष्ण, कर्कश-मृदु, गुरु-लघु, स्निग्ध-रूक्ष। ये चारों अपने जोड़ों में एक-दूसरे के विरोधी रहते हैं। जब एक रहता है तब दूसरा नहीं रहता, परन्तु चार-चार एकदम रह सकते हैं। जैसे कि शीत, मृदु, गुरु, रूक्ष। ऐसा न समझना चाहिए कि चारों जोड़ों से पहले के ही चार रह सकते हैं अथवा अन्तिम चार ही रह सकते हैं, किन्तु इतना ही समझना चाहिए कि, किसी भी जोड़े के दोनों गुण युगपत् नहीं रहते, शेष कोई भी चार रह सकते हैं। अब रही परमाणुओं की बात, सो सभी आठ भेदों में से स्निग्ध व रूक्ष ये दो गुण तो परमाणुओं में रहते ही हैं। क्योंकि सूत्रकार ने स्वयं परमाणुओं का बन्ध स्निग्ध, रूक्षता के वश होने से लिखा है। इनके सिवा उष्ण व शीत ये दो गुण और भी परमाणुओं में रह सकते हैं। क्योंकि, इन दो गुणों का स्थूलता के साथ कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है और परमाणुओं के साथ कोई विरोध भी नहीं हो सकता है, इसीलिए परमाणु में उक्त चारों स्पर्शों में से दो स्पर्श रह सकते हैं। वर्णादिक तीन के मिलने से पाँच गुण परमाणु में एक साथ हो जाते हैं। शेष जो चार स्पर्श हैं वे स्कन्ध के ही विकार हैं। परमाणुओं में उनका प्रादुर्भाव होना असम्भव है। वर्णादि तीन गुणों के भेद सर्व बारह हैं। वे जिस प्रकार स्कन्ध में मिलते हैं उसी प्रकार परमाणुओं में भी मिल सकते हैं। सारांश, परमाणुओं में स्पर्श गुण के आठ पर्यायों में से चार नहीं मिलते, परन्त वर्णादि तीन गणों के जो मख्य भेद हैं वे सभी मिलते हैं अर्थात् एक समय में एक परमाणु में चार गुणों के बीस उत्तर भेदों में से पाँच भेद मिल सकते हैं और स्कन्धों में एक समय में सात तक मिल सकते हैं।
पुद्गल के मुख्य पर्याय
शब्द-संस्थान-सूक्ष्मत्व-स्थौल्य-बन्धसमन्विताः।
तमश्छाया-तपोद्योत-भेदवन्तश्च सन्ति ते॥ 62॥ अर्थ-शब्द, संस्थान, सूक्ष्मता, स्थूलता, बन्धन, तम, छाया, आतप. उद्योत और भेद ये दश अवस्थाएँ पुद्गल की ही असाधारण अवस्थाएँ हैं। इनमें से कुछ तो ऐसी हैं कि जो स्कन्ध और परमाणु दोनों में मिलती हैं और कुछ केवल स्कन्ध के ही पर्याय हैं। इनका आगे खुलासा करते हैं।
शब्दों के भेद
साक्षरोऽनक्षरश्चैव शब्दो भाषात्मको द्विधा।
प्रायोगिको वैस्त्रसिको द्विधाऽभाषात्मकोऽपि च ॥ 63 ।। अर्थ-कानों से जो सुना जाता है उसे शब्द कहते हैं। उसके भाषात्मक, अभाषात्मक, ऐसे दो भेद हैं। मुख से जो उत्पन्न हो वह भाषात्मक है। इसके अतिरिक्त जो दो वस्तुओं के आघात से उत्पन्न
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