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98 :: तत्त्वार्थसार
यहाँ तक चार मूल भेदों और उत्तर भेदों के नाम बताये, अब उन प्रत्येक भेदों में किस-किस प्रकार के देव रहते हैं यह बताते हैं। देवों में इन्द्र आदि भेदों का वर्णन
इन्द्राः सामानिकाश्चैव त्रायस्त्रिशाश्च पार्षदाः॥218॥ आत्मरक्षास्तथा लोकपालानीक-प्रकीर्णकाः। किल्विषा आभियोग्याश्च भेदाः प्रतिनिकायकाः ॥ 219॥ त्रायस्त्रिशैस्तथा लोकपालैर्विरहिताः परे।
व्यन्तरज्योतिषामष्टौ भेदाः सन्तीति निश्चिताः॥ 220॥ अर्थ-1. इन्द्र, 2. सामानिक, 3. त्रायस्त्रिंश, 4. पार्षद, 5. आत्मरक्ष, 6. लोकपाल, 7. अनीक, 8. प्रकीर्णक, 9. किल्विषक और 10. आभियोग्य-ये दश भेद प्रत्येक उत्तरभेद में पाये जाते हैं। ये पूरे दश भेद तो वैमानिक तथा ज्योतिष्कों में ही रहते हैं। भवनवासी तथा व्यन्तरों में त्रायस्त्रिंश व लोकपालये दो भेद न होने से आठ-आठ भेद मिलते हैं। देवों में मैथुनकर्म का विचार
पूर्वे कायप्रवीचारा व्याप्यैशानं सुराः स्मृताः। स्पर्शरूपध्वनिस्वान्तः प्रवीचारास्ततः परे॥
ततः परेऽप्रवीचाराः कामक्लेशाल्पभावतः॥ 221॥ अर्थ-भवनवासी, व्यन्तर तथा ज्योतिष्क ये सब और वैमानिकों में से सौधर्म व ईशान इन दो स्वर्गों के देव, ये सब शरीर-सम्बन्धपूर्वक मनुष्य, तिर्यंचों की तरह स्त्री-सम्भोग करते हैं। इसके आगे तीसरे-चौथे स्वर्गवर्ती देव अपनी स्त्री का केवल आलिंगन करके अपने मन में सन्तोष मानते हैं। यहाँ विषयभोग की यही पद्धति है। इसके भी ऊपर पाँचवें स्वर्ग से आठवें तक के देव अपनी स्त्री का रूप देखते ही सन्तुष्ट हो जाते हैं। आगे बारह स्वर्ग तक चार स्वर्गों के देव अपनी स्त्रियों के शब्दमात्र सुनकर सन्तुष्ट हो जाते हैं। तेरहवें से सोलहवें स्वर्ग तक के देव अपनी देवांगनाओं का मन में चिन्तवन करते ही सन्तुष्ट हो जाते हैं। इससे आगे के ग्रैवेयकादि देवों में मैथुन की वासना उत्पन्न ही नहीं होती, क्योंकि उनकी कामवासना मन्द रहती है। ___ सन्तति की उत्पत्ति तो देवों में गर्भ द्वारा होती ही नहीं और न उनका वीर्य तथा इतर धातुओं से बना हुआ शरीर ही होता है। केवल मन की कामभोगरूप वासना तृप्त करने के ये उपाय हैं। सो उत्तरोत्तर वेग मन्द होने से थोड़े ही साधनों से वह वेग मिट जाता है। नीचे के देवों की वासना तीव्र होने से वीर्यस्खलन का सम्बन्ध न रहते हुए भी शरीर सम्बन्ध हुए बिना वासना दूर नहीं होती। इसके आगे वासना कुछ मन्द हो जाती है, इसलिए आलिंगन मात्र से उन्हें सन्तोष हो जाता है। आगे-आगे और भी वासना मन्द हो जाने से रूप देखते ही तथा शब्द सुनते ही वासना शान्त होने लगती है और भी ऊपर चलने
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