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114 :: तत्त्वार्थसार
तो भिन्न-भिन्न हैं ही परन्तु एक-एक स्थान में कहीं-कहीं पर अनन्त-अनन्त जीव रहते हैं । यही अवस्था पुद्गल की है। पुद्गल द्रव्य भी अनन्त हैं। काल द्रव्य के परमाणु एक-एक प्रदेश में एक-एक ही हैं, तो भी काल की सब संख्या असंख्यात है। इस प्रकार तीन द्रव्यों की अनेक-अनेक संख्या रहते हुए भी केवल छह द्रव्य इसलिए कहे गये हैं कि सामान्य छह लक्षणों में सभी का अन्तर्भाव हो जाता है।
चलनशक्ति का निश्चय
धर्माधौं नभः कालश्चत्वारः सन्ति निष्क्रियाः।
जीवाश्च पुद्गलाश्चैव भवन्त्येतेषु सक्रियाः॥18॥ अर्थ-छह द्रव्यों में से इधर-उधर हलने-चलने की क्रिया जीव तथा पुद्गल इन दो द्रव्यों में ही रहती है। शेष धर्म, अधर्म, आकाश, काल-ये चार द्रव्य केवल स्थिर हैं, इनमें से कभी कोई भी इधरउधर हिलता नहीं है। द्रव्यों की प्रदेशसंख्या
एकस्य जीवद्रव्यस्य धर्माधर्मास्तिकाययोः।
असंख्येयप्रदेशत्वमेतेषां कथितं पृथक् ॥19॥ अर्थ-एक-एक जीव द्रव्य के प्रदेशों की संख्या असंख्यात है। धर्माधर्म के प्रदेश भी असंख्यात हैं। तीनों की असंख्यात संख्या समान है। जितनी लोकाकाश के प्रदेशों की संख्या है उतनी ही इनकी है।
संख्येयाश्चाप्यसंख्येया अनन्ता यदि वा पुनः।
पुद्गलानां प्रदेशाः स्युरनन्ता वियतस्तु ते॥20॥ अर्थ-पुद्गल द्रव्य के परमाणु और स्कन्ध, ये दो प्रकार के भेद माने जाते हैं। जिसमें फिर विभाग नहीं हो सकता हो उस सूक्ष्म पुद्गल को परमाणु कहते हैं। अनेक परमाणु इकट्ठे होने से जो पिंड हो चुका हो उसे स्कन्ध कहते हैं। निमित्तों के मिलने पर परमाणुओं से पिंड और पिंड से परमाणुओं की अवस्था बदलती रहती है। परमाणु पुद्गलों में पुनर्विभाग नहीं हो सकता है, इसलिए उनमें अन्तर्गत अवयवों की या प्रदेशों की कल्पना नहीं हो सकती है और जो स्कन्ध हैं उनमें प्रदेशों की संख्या मानी गयी है। कोई पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशवाले होते हैं, कोई असंख्यात व कोई अनन्त वाले। प्रदेश व परमाणुओं में आकार से तो कुछ अन्तर नहीं पड़ता है, परन्तु अन्तर यह है कि जब जुदे-जुदे रहते हैं तब परमाणु नाम रहता है और जब मिले हुए हों तब स्कन्ध नाम प्रदेश नाम होता है। प्रदेश का अर्थ अतिसूक्ष्म अवयव है। परमाणु का अर्थ केवल अतिसूक्ष्म, स्वतन्त्र वस्तु होता है। प्रदेश शब्द विशेषणवाची है और परमाणु विशेष्य वाची। किसी वस्तु में प्रदेशों की मर्यादा देखनी हो तो परमाणुओं की मर्यादा से ही मालूम हो सकती है, परन्तु बद्ध अवस्था में परमाणु कहने की रूढि नहीं है। परमाणु में अन्तर्भेद नहीं होते इसलिए उसे अप्रदेशी कहते हैं। परन्तु परमाणु भी होता प्रदेशमात्र ही है। पुद्गल के सिवाय अन्य किसी भी द्रव्य में पुद्गल की-सी मिलन शक्ति नहीं है। आत्मा भी अशुद्ध होकर पुद्गलों में मिलता है, परन्तु तभी तक, जब तक कि पुद्गल से सर्वथा जुदा न हो पाया हो, पुद्गल परमाणु तक शुद्ध हो जाने पर भी फिर मिल जाता है।
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