________________
118 :: तत्त्वार्थसार
हैं। जब जीव को वह शरीर मिलता है तब उसकी उतनी छोटी अवगाहना हो जाती है। इसके ऊपर एक प्रदेशादिक बढ़ते हुए असंख्यातों प्रकार की बड़ी शरीराकृति भी होती हैं। सबसे बड़ी शरीराकृति एक मच्छ की होती है। उस योनि को जब जीव पाता है तो उतना प्रदेश विस्तार भी कर लेता है।
समुद्घातों के समय तीव्र कषायादि निमित्त उत्पन्न होने पर जीव का शरीर से बाहर भी निर्गमन हो जाता है, परन्तु वह कदाचित्, और थोड़े से समयों के लिए ही होता है। उस समय भी आत्मा शरीर को पूर्णतः छोड़ नहीं देता, कुछ आत्म प्रदेश तब भी मूल शरीर में रहते हैं। मूल शरीर के बाहर जहाँ तक वे प्रदेश जाते हैं, वहाँ तक एक-दूसरे प्रदेशों में परस्पर सम्बन्ध बना रहता है। ये प्रदेश पुद्गल की तरह टूटते नहीं हैं, संकोच होने पर फिर मूल शरीर मात्र हो जाते हैं। यह सब अवगाहनाओं में परस्पर अनेक भेद दिखाना शरीरों की अवगाहनावश है। वास्तव में प्रदेश संख्या की तरफ देखें तो प्रत्येक जीव असंख्यात प्रदेशी होता है। सबके प्रदेश बराबर होते हैं। वे प्रदेश जब केवली-समुद्घात के समय पसरते हैं तो ठीक लोक के बराबर हो जाते हैं। जब संकोच होने लगता है तो अत्यन्त संकोच हो जाता है, जो मरण के तीसरे समय की सूक्ष्म अवगाहना सदृश होता है। क्योंकि उससे सूक्ष्म कोई भी शरीर नहीं है। पुद्गलों की अवगाहना का परिमाण
लोकाकाशस्य तस्यैकप्रदेशादींस्तथा पुनः।
पुद्गला अवगाहन्ते इति सर्वज्ञ शासनम्॥25॥ अर्थ-पुद्गलद्रव्य की अवगाहना के विषय में सर्वज्ञ का उपदेश ऐसा है कि लोक के अन्तर्गत आकाश के एक प्रदेश से लेकर अवगाहना शुरू होती है और इसके ऊपर असंख्यातों प्रकार की छोटीबड़ी अवगाहनाएँ मिलती हैं।
पुद्गल का परमाणु तो एक ही आकाशप्रदेश को घेर सकता है, परन्तु जो स्कन्ध पुद्गल हैं वे एक प्रदेश में भी रहनेवाले कुछ होते हैं और कुछ एक प्रदेश से अधिक प्रदेशों को भी अपनी अवगाहनाओं से घेरनेवाले होते हैं। यहाँ यह बात ध्यान में रखने की है कि जितने किसी स्कन्ध में प्रदेश या परमाणु होंगे वह स्कन्ध उतने आकाशप्रदेशों से कम में तो रह सकता है, परन्तु अधिक आकाश को कभी नहीं घेर सकता है। यदि कोई स्कन्ध बहुत अधिक पसरा तो जितने उसमें परमाणु हैं उतने आकाश के प्रदेशों तक पसर सकता है और संकोच करे तो एक आकाशप्रदेशपर्यन्त भी सूक्ष्म हो सकता है। यह बन्धन की विचित्रता है। देखिए, एक तरफ रुई और दूसरी तरफ लोहे का एक टुकड़ा। बन्ध की विचित्रता कहने में नहीं आती कि कितने प्रकार की है।
शंका-एक आकाश प्रदेश में एक परमाणु या प्रदेश आ जाता तो न्याययुक्त है, क्योंकि जितना सूक्ष्म आकाश का प्रदेश होता है उतना ही सूक्ष्म परमाणु होता है, परन्तु अनेक परमाणु या प्रदेश, एक आकाशप्रदेश में समाना सम्भव है?
उत्तर-परमाणु अति सूक्ष्म होता है, इसलिए उसमें दूसरे परमाणुओं को बाधा करने की शक्ति नहीं रहती है। बहुत से स्थूल पदार्थ भी ऐसे देखने में आते हैं जो कि परस्पर दूसरों को अपनी जगह में आते हुए बाधा नहीं करते हैं। देखिए, पानी में शक्कर डाल देने से उसी के भीतर आ जाती है। यदि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org