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तृतीय अधिकार :: 129
पर्यायों का तथा पचन, गमन आदि क्रियाओं का हेतुमात्र कह सकते हैं। जैसे कि धर्म द्रव्य को गतिहेतु कह सकते हैं, न कि स्वयं गतिरूप कह सकते हों। इसी प्रकार 'अब, तब' इत्यादि कल्पनाओं से भी काल द्रव्य की ही सिद्धि होती है।
किसी भी पर्याय में जो अब, तब इत्यादि कल्पना होती है उसका कुछ भी कारण होना चाहिए। उसी कारण को काल कहते हैं। अब, तब ऐसी कल्पना यद्यपि वस्तुओं के देखने पर ही होती है, परन्तु उन वस्तुओं का वह स्वाभाविक-सा धर्म जाना नहीं जा सकता है, इसीलिए जो कल्पना उसके देखने पर ही होती है, परन्तु उन वस्तुओं का वह स्वाभाविक-सा धर्म मानते हैं। जिसकी उत्पत्ति का कारण भिन्न नहीं होता वह स्वाभाविक-सा उत्पन्न हुआ जान पड़ता है। यदि 'अब' इसी प्रकार की होनी चाहिए
और या 'तब' इसी प्रकार की होनी चाहिए। स्वाभाविक गुण धर्म, बिना परनिमित्त के अपना विरूप कभी नहीं कर सकते हैं, इसीलिए वे सदा एक से रहते हैं। ___ जैसे, ज्ञान गुण में जब तक परनिमित्त नहीं मिलता तब तक उसका विपर्यास नहीं होता। परनिमित्त मिलने पर विपर्यास अवश्य ही होता है। इसी प्रकार स्वयं वस्तु 'अब' तथा 'तब' ऐसे दो रूप बदल नहीं सकती है. इसलिए अब. तब आदि भिन्न स्वरूपों के होने से उन स्वरूपों का उत्पादक भिन्न कारण मानना पड़ता है। यदि इस युक्ति से काल द्रव्य की सिद्धि न होगी तो आकाशादि द्रव्य भी सिद्ध होना कठिन हो जाएगा।
पुद्गल शब्द का अर्थ
भेदादिभ्यो निमित्तेभ्यः पूरणाद् गलनादपि।
पुद्गलानां स्वभावज्ञैः कथ्यन्ते पुद्गला इति ॥ 55॥ अर्थ-विदारण या संयोगादि निमित्तों से जो टूटते-फूटते भी रहते हैं-उपचित होते हैं, उन्हें पुद्गल कहते हैं। पुद्गल स्वभाव के ज्ञाता जिनेन्द्र ने पुद्गल का यह शब्दार्थ कहा है। पुद्गलों के मूल भेद
अणु-स्कन्ध-विभेदेन द्विविधाः खलु पुद्गलाः। स्कन्धो देशः प्रदेशश्च स्कन्धस्तु त्रिविधो भवेत्॥56॥ अनन्त-परमाणूनां संघातः स्कन्ध इष्यते।
देशस्तस्यामिर्धार्धं प्रदेश: परिकीर्तितः॥ 57॥ अर्थ-पुद्गलों के दो प्रकार देखने में आते हैं-अणु और स्कन्ध । इनके लक्षण आगे कहेंगे। स्कन्ध का साधारण अर्थ 'अनेक परमाणुपिण्ड' होता है। जिसका दूसरा टुकड़ा न हो सके ऐसे अतिसूक्ष्म अविभाज्य एक टुकड़े को परमाणु कहते हैं। स्कन्ध तीन प्रकार के मिलते हैं जो संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश वाले होते हैं। उनमें से एक का नाम स्कन्ध, दूसरे का नाम देश और तीसरे का नाम प्रदेश है। अनन्त-अनन्त परमाणु जिस पिंड में मिले हुए हों उसे स्कन्ध कहते हैं। उससे आधे परमाणुओं के पिंड को देश तथा उससे भी आधे परमाणुओं के पिंड को प्रदेश कहते हैं।
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