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द्वितीय अधिकार :: 59
एकेन्द्रियादि जीवों के भेद
स्थावराः स्युः पृथिव्यापः-तेजो-वायुर्वनस्पतिः।
स्वैः स्वैर्भेदैः समा ह्येते सर्व एकेन्द्रियाः स्मृताः। 52॥ अर्थ-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पाँचों तथा इनके उत्तर भेद भी सब स्थावर हैं और सभी एकेन्द्रिय हैं।
द्वीन्द्रिय जीवों के नाम
शम्बूकः शख-शक्ती वा गुण्डू-पदक-पर्दकाः।
कुक्षि-क्रम्यादयश्चैते द्वीन्द्रियाः प्राणिनो मताः ॥ 53॥ अर्थ-शम्बूक, शंख, सीप, गेंडुआ, कौड़ी, उदर में होने वाली कृमि इत्यादि सभी द्वीन्द्रिय प्राणी हैं। त्रीन्द्रिय जीवों के नाम
कुन्थुः पिपीलिका कुम्भी वृश्चिकश्चैन्द्रगोपकः।
घुण-मत्कुण-यूकाद्याः त्रीन्द्रियाः सन्ति जन्तवः ॥ 54॥ अर्थ-कुन्थु, चींटी, कुम्भी, बिच्छू, इन्द्रगोप (गिंजाई), घुन, खटमल, जूं इत्यादि जीव त्रीन्द्रिय हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों के नाम
मधुपः कीटको दंशमशकौ मक्षिकास्तथा।
वरटी शलभाद्याश्च भवन्ति चतुरिन्द्रियाः॥ 55॥ ___ अर्थ-भौंरा, उड़ने वाले कीड़े, डांस, मच्छर, मक्खी, पतंगा, पिस्सू, बर्र, इत्यादि प्राणी चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं। पंचेन्द्रिय जीवों के नाम
पञ्चेन्द्रियाश्च माः स्युरिकास्त्रिदिवौकसः।
तिर्यंचोऽप्युरगाभोगि-परिसर्पचतुष्पदाः॥ 56॥ अर्थ-मनुष्य, नारकी व देव ये सभी पंचेन्द्रिय होते हैं और संज्ञी भी होते हैं। तिर्यंचों में चतुरिन्द्रिय पर्यंत के जीवों को छोड़कर जो पंचेन्द्रिय होते हैं उनमें से कुछ के नाम ये हैं। जैसे-उरग, आभोगी व परिसर्प आदि नामोंवाले सर्प, तथा चार पैर वाले सभी तिर्यंच-ये सब पंचेन्द्रिय हैं। काय ( तीसरी मार्गणा) में पृथिव्यादि जीवों की आकृति
मसूराम्बु-पृषत्सूची-कलाप ध्वजसन्निभाः।
धराप्तेजो मरुत्काया, नानाकारास्तरु त्रसाः। 57॥ अर्थ-पृथिवी के जीवों का शरीराकार मसूर के तुल्य, जल जीवों का शरीर जलकण के तुल्य,
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