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श्रमणविद्या-३
आदरणीय जनों के प्रति आदर प्रकट करने को गारव गरुकरण कहते हैं। बुद्ध, प्रत्येक बुद्ध, तथागतश्रावक, आर्चाय-उपाध्याय, माता-पिता, ज्येष्ठ भ्राता, ज्येष्ठा भगिनी आदि आदरणीय हैं सम्पूज्य हैं। आदरणीय को जो आदर देता है माननीय को जो मानता, पूजनीय को जो पूजा करता है, वह मरने के बाद सुगति तथा स्वर्गलोक को प्राप्त करता है। जो शास्ता, धर्म संघ तथा समाधि को गौरव प्रदान करता है, शिक्षा में तीव्रगौरव रखता है, ह्री-अपनपा सम्पन्न है, श्रद्धवान् और गौरवयुक्त है, उसकी परिहानि नही होती और वह निर्वाण के समीप रहता हैसत्थुगरु धम्मगरु संघे च तिब्बगारवो
समाधिगरु आतापी सिक्खाय तिब्बगारवो हिरी ओतप्पसम्पन्नो सम्पतिस्सो सगारवो
अभब्बो परिहानाय निब्बानस्सेव सन्तिके ।। निवात अर्थात् विनम्रता को भगवान बुद्ध ने उत्तम मंगल कहा है। 'निवातो नाम नीचमनता निवातवुत्तिता अर्थात् निवात का अर्थ है नीचमनता। यो पुद्गल निवातगुण से विनम्रता के गुण से युक्त रहता है वह अहंकार रहित (निहतमानो) दर्परहित निहतदप्पो पैर पोछने वाले कपड़े के समान (पादपुञ्छनचोलसदिसो) विषाणछिन्न वृषभ के समान, दाँत उखाडे हुए साँप के समान (उद्धरदाठसप्पसदिसो) विनम्र विप्रसन्न और सुखपूर्वक संभाषण योग्य होता है। अत: यश आदि गुणों के प्रतिलाभ के कारण विनम्रता उत्तम मंगल है। कहा भी गया है
पण्डितो सीलसम्पन्नो सहो च पटिभानवा ।
निवातवुत्ति अत्थद्धो तादिसो लभते यसं ।। वह जो पण्डित अर्थात् बुद्धिमान् है, शीलसम्पन्न है तथा विनम्र है, प्रज्ञावान् है, निवातवृत्तिवाला है, विनीत और आज्ञाधीन है वह यश प्राप्त करता है।
जो व्यक्ति जाति जन्म का, धन तथा गोत्र का अहंकार रखता है और सम्बन्धियों कुटुम्बों का अनादर करता है, उसका सर्वत्र पराभव होता है।
जाति थद्धो धनथद्धो गोत्तथद्धो च यो नरो सञ्जातिं अतिमञ्जति तं पराभवतो मुखं ।।
१. अंगु देवतावग्ग (सत्तकनियात) २. दीघ सिंगासकसुत्त। ३. सु. नि.
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