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बङ्गाल के प्राचीन बौद्धविहारों में श्रमणों के नियम एवं शिक्षा व्यवस्था १३९
शाम को कार्यदान की घण्टा ध्वनि को सुनकर विहार के भिक्षु विहार का और स्तूपों की परिक्रमा के लिए एकत्रित होते थे। स्तूपों और विहार का परिक्रमा करने के बाद भगवान बुद्ध का स्तोत्र पाठ करते थे। उसके बाद पूजा भवन में एकत्रित होते थे, वहाँ पर बड़े भिक्षु के साथ सूत्रपाठ और बोधिचर्या - वतार आदि ग्रन्थों का पाठ करते थे। तदुपरान्त भक्ति सूत्र से दस श्लोक पाठ करके पूजा का समापन करते हुये बोधिसत्त्व और अर्हतों के समक्ष नत मस्तक होते थे, प्रातः चार बजे की घण्टा ध्वनि होने पर भिक्षुओं अपने अपने कक्ष मे जाकर ध्यान और बुद्ध प्रार्थना करते थे । यही विहार के भिक्षु संघो की दिनचर्या थी, भारत वर्ष के प्रत्येक विहार में और भारा विहार में भी भिक्षु गृहस्वामियों के पुत्रों को शिक्षा देते थे और गुरू दक्षिणा के रूप में शिष्यों से जमीन आदि प्राप्त होती थी जो कि भविष्य में विहारों की सम्पत्ति बनी। जो शिष्य भिक्षु बनने की और शास्त्र अध्ययन करने के लिए आते थे उन सब उपासको को श्वेत वस्त्र धारण करना होता था, और जो शिष्य मात्र ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे, उनको ब्रह्मचारी कहा जाता था, ये दोनों प्रकार के शिष्य विहार में भोजन और वस्त्र का खर्च स्वयं ही वहन करते थे। उन्हें भोजन और वस्त्र के लिए धन विहार के भिक्षु संघ से प्राप्त नहीं होता था, लेकिन यदि कोई विद्यार्थी संघ के लिए कुछ कार्य करता था तो उसको भिक्षु संघ के कोषागार से कुछ अर्थ प्रदान किया जाता था या विहार में बिना खर्च से भोजन आदि की व्यवस्था होती थी । प्रतिदिन प्रातः काल में विद्यार्थी गुरू के समक्ष उपस्थित होते थे तथा गुरू को प्रणाम करके अध्ययन प्रारम्भ करते थे।
उस समय विहार में छः साल की आयु में शिक्षा प्रारम्भ होती थी, आठ साल से पन्द्रह साल तक विद्यार्थियों को सूत्र, धातु, विभक्ति और पाणिनि के सूत्र आदि का अध्ययन कराया जाता था । चीनदेश के भिक्षु ने ताम्रलिप्ति ( वर्तमान में तमलुक) में आकर पहले पाणिनि के व्याकरण का अध्ययन करते थे। उस समय के विहार स्थित शिक्षालयों की शिक्षा व्यवस्था में इन विषयों की शिक्षा दी जाती थी, १. शब्दविद्या २. शिल्पविद्या ३. चिकित्साशास्त्र ४. हेतुविद्या ५. अध्यात्मविद्या आदि का गहन अध्ययन कराया जाता था और उपासकों के लिए विनयपिटक एवं बौद्धधर्म से सम्बन्धित ग्रन्थों का अध्ययन
कराया जाता था ।
उस समय विहारों में अध्यात्म शिक्षा के साथ साथ चिकित्साशास्त्र के अध्ययन के लिए तक्षशिला सबसे अच्छा माना जाता था । मिलिन्द पञ्हो एवं
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