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परिचिति
कृत है। वह बुद्धशासन को सिंहलीभाषा से मागधी भाषा में परिवर्तित करने में समर्थ है। इन्द्र ने घोसदेव पुत्र के निकट जाकर कहा कि महास्थविर तुझे मनुष्य लोक में ले जाना चाहते हैं। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि मेरे जाने से बुद्ध शासन जो लोगों को ज्ञात नहीं हो रहा है उन्हें ज्ञात होगा, तो वह मनुष्य लोक आने को तैयार हो गया। स्थविर केसी ब्राह्मण के मित्र थे। वहाँ से आकर पात्र चीवर लेकर ब्राह्मण के घर पिण्डपात के लिए पहुँचे और उन्होंने कहा कि आज से सातवें दिन तुझे पुत्र लाभ होगा। सातवें दिन घोसदेव पुत्र केसिनी ब्राह्मणी के उदर में प्रवेश किया और दस मास बीतने पर उत्पन्न हुआ। उनके जन्म के समय दास, कर्मकर और ब्राह्मण परिषद् दूसरे को सुन्दर आवाज में खाओ-पीओ कहा इसलिए उस बच्चे का नाम घोसकुमार रखा गया।
घोसकुमार सात वर्ष में ही सम्पूर्ण वेदों का अध्ययन कर तीनों वेदों में पारंगत हो गया। घोसकुमार को बड़े प्यार से उनके माता-पिता ने पाला-पोसा
और उनके प्रतिभा से प्रसन्न हुये। एक दिन केसी ब्राह्मण राजा को वेद पढ़ाने के लिए अपने पुत्र के साथ गया था। वह शिक्षा काल में वेद के एक कठिन स्थल को पाकर उसके अर्थ और अभिप्राय को न जानकर राजा से पूछ कर अपना घर लौट गया। घोस कुमार ने यह समझ लिया कि मेरे पिता वेद की इस ऋचा के अर्थ को नहीं जानते हैं, इसलिए उसने एक कागज पर उसका अर्थ लिखकर रख दिया। केसी ब्राह्मण उसे देखकर और उसके अभिप्राय को जानकर बड़ा सन्तुष्ट हुआ। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि यह 'अर्थ' हमारे पुत्र ने ही लिखा है, तो उसकी प्रशंसा करते हुये राजा को बतलाया। जिससे राजा ने संतुष्ट होकर उसका आलिंगन किया और प्यार से कहा- 'तुम मेरे पुत्र हो और में तुम्हारा पिता हूँ। इस तरह बुद्धघोष के जन्म और शिक्षा के संबंध में इस अध्याय में चर्चा की गई हैं।
द्वितीय परिच्छेद ग्रंथ के द्वितीय परिच्छेद में बुद्धघोष की प्रव्रज्या और आचार्य उपाध्याय के द्वारा प्राप्त उपसम्पदा का वर्णन किया गया है। इसमें यह बतलाया गया है कि केसी ब्राह्मण के मित्र महास्थविर अपनी प्रकृति के अनुसार पिण्डपात के लिए उनके घर गये। वहाँ उन्होंने उन्हें बुद्धघोष के आसन पर बैठाया। इसे देखकर घोस ब्राह्मण कुमार क्रोधित हो गया और कहा कि क्या मुण्डक स्थविर वेद की ऋचाओं को जानता है अथवा कोई दूसरा मंत्र जानता है। महास्थविर ने उत्तर दिया 'मैं' सभी वेदों के मंत्रों को जनाता हूँ उसने वेद मंत्रों का जटा
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